एक बारहसिंघा था।
वह अक्सर एक तालाब के पास जाया करता था और अपनी पानी में अपनी परछाई देखकर अपने आपसे कहता,
“मेरे सींग कितने सुंदर हैं! काश मेरे पैर भी इतने ही सुंदर होते!”
एक दिन एक शेर ने उसका पीछा किया।
बारहसिंघा घने जंगल की ओर भागा, लेकिन उसके सींग एक घनी झाड़ी में फंस गए। उसे लगा कि उसकी मौत अब पास आ चुकी है।
वह अपने सींगों को कोसने लगा।
आखिरकार, उसने अपने मज़बूत पैरों की सहायता से अपने आपको झाड़ी से मुक्त करा लिया।
इसके बाद वह अपने मजबूत पैरों से उछलता-कूदता जंगल में भाग गया और शेर से बचने में सफल हो गया।
बारहसिंघा ने अपने कुरूप पैरों को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया, जबकि उसके सुंदर सींगों की वजह से तो उसकी जान ही जाने वाली थी।
वह सोचने लगा कि उसे संकट से बचने के लिए सींगों के बजाय पैरों की अधिक आवश्यकता है।
उसके बाद से उसने अपने पैरों को कभी कुरूप नहीं माना।