एक जंगल में एक बहुत शक्तिशाली शेर रहता था।
वह पूरे जंगल में निडर होकर घूमता रहता था और जो भी जानवर उसे दिख जाता,
उसे मार डालता।सारे जानवर बहुत चिंतित थे।
एक दिन सारे जानवर एक साथ शेर के पास पहुँचे और कहने लगे, “आप हमारे राजा हैं।
हम नहीं चाहते कि आपको शिकार करने के लिए इधर-उधर भटकना पड़े।
हम लोग स्वयं ही प्रतिदिन एक जानवर आपके पास भोजन के लिए भेज दिया करेंगे।
” शेर मान गया और बोला, “लेकिन याद रखना, हर दिन दोपहर में खाने के समय से पहले एक जानवर मेरी गुफा में पहुंच जाना चाहिए, वरना मैं तुम सबको मार डालूँगा।”
इसके बाद, जंगल में शांति हो गई।
एक दिन एक छोटे और दुबले-पतले खरगोश की बारी आई।
वह बेहद चतुर था।
उसने तय कर लिया कि जैसे भी हो, अपनी जान बचानी ही है।
वह शेर की गुफा की ओर चल पड़ा और कोई उपाय सोचने लगा।
रास्ते में उसे एक गहरा कुँआ मिला। कुँए में साफ पानी में उसे अपनी परछाई दिखाई दी।
उसके दिमाग में एक विचार कौंधा।
तब तक, शेर अपनी गुफा से बाहर आ चुका था।
खरगोश को देखकर वह ज़ोर से दहाड़ने लगा।
खरगाश बोलने लगा, “महाराज, देरी के लिए क्षमा करें।
देरी के लिए मैं या साथी जानवर दोषी नहीं हैं।
आपके भोजन के लिए मेरे साथ चार और खरगोश भेजे गए थे, पर रास्ते में हम लोगों को एक बहुत शक्तिशाली शेर मिल गया।
उसने हम लोगों को रोक लिया और पूछने लगा कि कहाँ जा रहे हो।
जब हमने उसे पूरी बात बताई तो वह बहुत गुस्सा होने लगा।
वह कहने लगा कि वही जंगल का असली राजा है।
वह तो आपको नकली राजा कहने लगा।
उसने झपटकर चारों खरगोशों को पकड़कर खा लिया और मुझे आपके पास भेज दिया!"
शेर ने गुस्से में आकर ज़ोर से दहाड़ मारी।
“ये कौन नकली राजा आ गया है जो मेरी जगह लेना चाहता है ?" वह हैरानी से बोला। “मुझे अभी उसके पास ले चलो!”
खरगोश उस शेर को कुँए के पास ले गया।
“अंदर झाँकिए,” वह बोला, “आपको कुँए के अंदर वह दूसरा शेर दिख जाएगा।”
शेर ने कुँए में झाँककर देखा। उसे अपनी ही परछाई दिखाई दी।
वह समझा कि वही दूसरा शेर हैं।
गुस्से में दहाड़ मारकर वह कुँए में कूद गया और डूबकर मर गया।
चतुर खरगोश की जान बच गई।
कई बार बुद्धि के सहारे अपने से शक्तिशाली शत्रु को भी मात दी जा सकती है।