बोधिसत्व ने एक बार साधु के रूप में जन्म लिया।
हर रोज साधु गाँव जाकर भिक्षा माँगता।
जब साधु गाँव जाता तो एक बंदर उसकी कुटिया में घुस जाता और खाने-पीने का सारा सामान चटकर जाता तथा सारा सामान अस्त-व्यस्त कर जाता।
एक बार जब बंदर साधु की कुटिया में घुसा तो उसे खाने को कुछ नहीं मिला।
वह साधु को देखने गाँव तक चला गया।
गाँव वाले पूजा करने के बाद साधु को प्रसाद देने जा रहे थे।
बंदर साधु के पास जाकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।
गाँव वालों को लगा कि यह बंदर तो ध्यान कर रहा है।
वे उसकी भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए। तभी साधु ने बंदर को पहचान लिया।
उसने गाँव वालों को बता दिया कि यह तो वही बंदर है,
जो उसकी कुटिया में घुसकर सारा सामान तोड़-फोड़ देता है और उसे परेशान करता है।
क्रोधित गाँव वालों ने बंदर को खदेड़कर भगा दिया।