बोधिसत्व ने एक बार एक विद्वान के रूप में जन्म लिया।
वे तपस्वी बन गए और उनके कई शिष्य भी बन गए।
एक दिन, बोधिसत्व अपने शिष्य अजित के साथ वन से गुजर रहे थे कि उन्हें एक भूखी बाघिन दिखी, जो अपने ही बच्चों को खाने जा रही थी।
इस दृश्य को देखकर बोधिसत्व को बहुत दुख हुआ।
उन्होंने स्वयं को बाघिन के भोजन के लिए प्रस्तुत करने का निश्चय किया। यह सोचकर,
उन्होंने किसी बहाने से अजित को कहीं भेज दिया और स्वयं को बाघिन के सामने प्रस्तुत कर दिया।
बाघिन ने अपने बच्चों के साथ मिलकर उन पर टूट पड़ी।
जब अजित वापस लौटा तो उन्होंने अपने गुरु के रक्त से सने कपड़े देखे।
वह दुख से रोने लगा, “हे भगवान! तो गुरुजी के कपड़े हैं।
इसका मतलब कि ये जानवर उन्हें मारकर खा गए..."
दुखी मन से अजित लौट आया और सबको उसने अपने गुरु की दया,
करुणा और बलिदान के बारे में बताया।