एक बार, नागों के राजा ने मनुष्य का रूप धारण किया और एक साधु के पास पहुँच गया।
साधु ने नागराज का स्वागत किया और जल्द ही वे दोनों अच्छे मित्र बन गए।
अब नागराज साधु के पास अक्सर जाने लगा।
एक दिन नागराज अपने असली स्वरूप में साधु के पास पहुंच गया।
साधु उसे देखकर डर गया।
साधु के एक साथी ने उसे सलाह दी,
"अगर तुम नागराज से पीछा छुड़ाना चाहते हो तो उससे उसकी सबसे प्रिय वस्तु माँगना शुरू कर दो।
मुझे विश्वास है कि वह तुम्हारे पास आना छोड़ देगा।"
अगले दिन, जब नागराज आया तो साधु उससे उसके सिर पर लगी मणि माँगने लगा।
उसके बाद तो वह प्रतिदिन नागराज से उसकी इच्छा पूरी करने वाली मणि की माँग करने लगा।
एक दिन नागराज चिढ़ ही गया और बोला, “तुम हर समय मुझसे मणि ही माँगते रहते हो।
अब मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आऊँगा।"
इस प्रकार, साधु फिर से शांतिपूर्ण तपस्वी का जीवन जीने लगा और उसे कोई डर नहीं रहा।