एक दयालु राजा था।
उसके महल में एक तालाब था।
तालाब में सुनहरे हंस रहते थे।
वे बहुत आराम का जीवन जी रहे थे।
वे हर माह राजा को सोने के पंख देते थे।
एक दिन वहाँ बाहर से एक पक्षी आया।
हंस उसे देखकर मन ही मन जलने लगे।
"देखो, ये पक्षी तो बिलकुल सोने जैसा ही है।
राजा तो अब उसे अधिक महत्व दिया करेगा।
हमें इसे खदेड़कर यहाँ से भगाना होगा, नहीं तो हमारी कोई पूछ नहीं रहेगी, हंसों ने आपस में बातचीत की।
अचानक, राजा के सिपाहियों ने देखा कि हंसों ने उस बाहरी पक्षी पर आक्रमण कर दिया है।
राजा महल से बाहर दौड़ा आया।
उसने भी लड़ाई का यह दृश्य देखा।
“पकड़ो इन हंसों को और पिंजरे में बंद कर दो।
ये उस नए पक्षी से ईर्ष्या कर रहे हैं," राजा ने क्रोध में आकर आदेश दिया।
हंस तुरंत उड़कर वहाँ से चले गए।
ईर्ष्या के कारण हंसों अपनी सारी सुख-सुविधाएँ खो दी।