एक झील किनारे एक मोर रहता था।
उसे अपने सुंदर-सुंदर पंख बहुत अच्छे लगते थे।
एक दिन एक सारस भी वहीं रहने आ गया।
मोर ने कहा, “तुम्हारा इस स्थान पर स्वागत है।"
अब मोर ने अपने पंख फैलाए।
चमकीली धूप में उसके रंगीन पंख बहुत सुंदर लग रहे थे।
झील के पानी में उनकी परछाई दिख रही थी।
वह अपने पंखों को देखकर गर्व महसूस करने लगा।
गर्व में डूबा मोर बोला, “मेरे पंख देखो। देखा, कितने सुंदर और आकर्षक हैं।
तुम्हारे पंखों से बहुत अधिक सुंदर हैं ये।" सारस मोर के घमंडी भाव को पहचान गया।
वह बोला, “मेरे पंख जैसे भी हैं, पर उनकी सहायता से मैं उड़ तो लेता हूँ। तुम्हारी सुंदरता किसी काम की नहीं है।
तुम अपने पंखों से उड़ तक नहीं सकते।
सारस की सीधी-सपाट बात से मोर को वास्तविकता का अहसास हो गया।
उसने फिर घमंड करना छोड़ दिया।