बहुत समय पहले की बात है।
एक मोमबत्ती को अपने ऊपर बहुत घमंड था।
वह अपने आपको बहुत महत्वपूर्ण समझती थी और बड़ी अकड़ के साथ जला करती थी।
जलने वाले मोम की वजह से वह काफी मोटी हो गई थी और पिघलने लगी थी।
वह घमंड में आकर अपने को सबसे तेज़ रोशनी मानने लगी।
वह सोचने लगी कि उसकी रोशनी तो सूरज और चंद्रमा से भी तेज़ है।
जब घमंडी रोशनी अपनी शान में मस्त थी, तभी हवा का तेज़ झोंका आया और मोमबत्ती बुझ गई।
किसी ने आकर उसे फिर से जला दिया।
हवा से मोमबत्ती फिर बुझ गई तो किसी ने उसे एक बार और जला दिया और डाँटकर बोला, “मूर्ख, तू चुप रह।
सूरज और चंद्रमा रोशनी के स्थायी स्रोत हैं और वे तेरी तरह कभी बुझते नहीं है।
तेरी रोशनी तो आग की लौ के कारण है।
कोई भी अपनी इच्छा से तुझे जब चाहे जला सकता है और जब चाहे बुझा सकता है।"