भेड़िया और चरवाहे

एक गाँव में कुछ चरवाहे रहते थे।

उनके पास बहुत सारी भेड़ें और बकरियाँ थीं।

वे अपनी भेड़ों-बकरियों की अच्छी तरह से देखभाल करने के लिए जाने जाते थे।

हालाँकि, वे खुद ही अपने जानवरों को मारकर उनका माँस खा जाते थे।

एक बार एक भेड़िए की नज़र एक झोपड़ी पर पड़ी।

उसने देखा कि झोपड़ी में बढ़िया माँस पक रहा है।

भेड़िया मुस्कराया और सोचने लगा, “अरे, अगर इन चरवाहों ने मुझे यहाँ देख लिया तो वे मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे।

और, इन्हें देखो, ये उन्हीं भेड़ों-बकरियों का माँस पका रहे हैं, जिनकी रक्षा की ज़िम्मेदारी इन्हीं की है।

जिस काम से ये दूसरों को रोकते हैं, वही काम ये खुद भी करते हैं।"

यह सही भी है कि मनुष्य जिस काम के लिए दूसरों की निंदा करता है, वही काम वह खुद करने में संकोच नहीं करता।