एक समय की बात है।
एक सुखी गिद्ध था।
उसका स्वभाव तर्क-वितर्क करने का था।
अपने आस-पास की हर चीज और हर घटना को गहराई से देखना और विश्लेषण करना उसकी आदत थी।
इस प्रकार, उसे बहुमूल्य ज्ञान मिलता था।
एक दिन, वह पेड़ की ऊँची डाल पर बैठा था।
पेड़ के नीचे एक शिकारी धनुष-बाण लिए घात लगाए बैठा था।
उसने निशाना साधा और गिद्ध पर बाण चला दिया।
बाण सीधे उसके पेट में लगा।
गिद्ध बुरी तरह से घायल हो गया और दर्द से उसकी जान निकलने लगी तभी उसका ध्यान पेट में घुसे बाण पर गया।
उसने देखा कि बाण गिद्धों के पंखों से ही सजा था।
उसे जीवन की सरल सचाई समझ में आ गई। वह बोला, "हमारे ही पंखों से बनाए इस बाण से मिला घाव कितना दर्दनाक और घातक है!
कितनी विचित्र बात है कि जिन बाणों से हमारे प्राण लिए जा रहे हैं, वे हमारे ही पंखों से बनाए जाते हैं।"