प्यासा कबूतर

एक बार की बात है।

एक कबूतर सुखी जीवन बिता रहा था।

गर्मियों के दौरान सारी झीलें और तालाब सूख गए।

कबूतर को प्यास लगी थी और वह बेसब्री से पानी की तलाश में था।

उसने बहुत कोशिश की लेकिन उसे कहीं पानी नहीं दिखाई दिया।

उसे एक दीवार दिखी, जिस पर एक विज्ञापन बना था।

उस विज्ञापन में एक गिलास भी बना हुआ था।

कबूतर ने समझा कि यह गिलास असली है और वह पूरी ताकत से दीवार की ओर गया।

वह दीवार से बुरी तरह से टकरा गया और उसे चोट लग गई।

उसके पंख टूट गए।

घायल पंखों के साथ वह धरती पर असहाय होकर गिर पड़ा।

कुछ ही देर में वहाँ से एक आदमी निकला और उसे उठाकर ले गया।

सही कहा गया है कि उत्साह में आकर बुद्धि नहीं खोना चाहिए, भले ही कितनी बेसब्री क्यों न हो।