एक भेड़िया भेड़ों के झुंड के पीछे लगा था।
उसने झुंड के पास चरवाहे को देखा तो उसने भेड़ों पर हमला करने का प्रयास नहीं किया।
चरवाहे को उस पर संदेह तो था ही, इसलिए वह भेड़ों की निगरानी करता रहा।
अगली बार, फिर भेड़िया चुपचाप भेड़ों के साथ लगा रहा और उन पर उसने कोई हमला नहीं किया।
धीरे-धीरे वह भेड़ों के झुंड का ही हिस्सा बन गया। चरवाहे को भी उस पर विश्वास होने लगा कि वह भेड़ों पर हमला नहीं करेगा।
एक दिन, चरवाहे को किसी काम से शहर जाना पड़ा।
उसने भेड़िए पर भरोसा करते हुए उसे भेड़ों की रखवाली का काम सौंप दिया।
जैसे ही चरवाहा शहर के लिए निकला, भेड़िया तुरंत भेड़ों पर टूट पड़ा और एक-एक करके सबको मार डाला।
वापस लौटने पर चरवाहे ने देखा तो उसे अपनी मूर्खता समझ में आई।
उसे भेड़िए पर विश्वास करने का पश्चाताप होने लगा। भेड़िए जैसा मित्र किसी शत्रु भी बुरा होता है।