एक बूढ़ा बारहसिंघा बहुत अधिक बीमार हो गया।
यहाँ तक कि वह अपने खाने तक के लिए उठ नहीं पा रहा था।
बहुत प्रयास कर वह किसी तरह से अपने खींचकर एक सुरक्षित जगह पर ले गया, जहाँ उसे हरी घास आसानी से मिल जाए।
बारहसिंघा बहुत अच्छा था और समय-समय पर जंगल के दूसरे जानवर भी उसका हाल-चाल पूछने आते रहते थे।
सभी उसके जल्द ठीक हो जाने की कामना करते।
इससे एक और समस्या हो जाती।
सारे जानवर जाने से पहले बारहसिंघे के आस-पास की हरी घास भी चर जाते।
कुछ ही दिनों में उसके आस-पास की सारी हरी घास खत्म हो गई।
बारहसिंघा ठीक तो हो गया लेकिन उसने देखा कि उसके आस-पास का मैदान पूरी तरह से खाली हो चुका था।
वह अब काफी कमजोर था और किसी दूसरे मैदान में जाने लायक हिम्मत उसमें नहीं बची थी।
भूख के मारे आखिरकार उस बारहसिंघे की मौत हो गई।
उसके कथित मित्रों की लापरवाही का दंड उसे भुगतना पड़ गया।