कंजूस

एक कंजूस व्यक्ति था।

उसने अपना सारा सामान बेचकर खूब सारा सोना खरीद लिया।

सारा सोना उसने अपने घर के पिछवाड़े छिपा दिया।

वह बार-बार वहाँ जाकर देखता रहता था कि सोना सुरक्षित है अथवा नहीं।

उसके व्यवहार को देखकर उसके एक नौकर को उत्सुकता हुई।

एक दिन जब कंजूस घर में नहीं था, तब नौकर ने गड्ढे में देखा।

नौकर को बहुत सारा चमचमाता सोने का ढेर दिखाई दिया।

कुछ समय बाद, कंजूस लौट आया और उसने पाया कि गड्डा तो खाली है।

वह निराशा में डूबकर रोने-चिल्लाने लगा। उसका पड़ोसी आया और कहने लगा, मत रो, मेरे मित्र।

उस गड्ढे में एक पत्थर रख दो। वैसे भी तुम उस सोने को बेचना तो चाहते नहीं ये।

तुम तो बस उस बहुमूल्य संपत्ति को अपने पास रखना चाहते थे।

वह किसी के काम का नहीं था। उस गड्ढे में सोना रखे रहे या पत्थर, क्या अंतर पड़ता है।