बुद्ध का ज्ञान

बुद्ध कैसे बने ज्ञानी ? | ज्ञानी बुद्ध की रोचक कहानी

राजा के यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ।

पिता ने ज्योतिषियों को बुलाकर भविष्य पूछा।

उन्होंने कहा, "या तो यह सम्राट् होगा और या तो यह साधु होगा।"

एक तरह से देखा जाए तो सच्चा सम्राट भीतर से साधु ही होता है।

जब ज्योतिषियों की भविष्यवाणी राजा ने सुनी तो वे घबरा गए कि मेरा बेटा साधु हो जाए, ऐसा ठीक नहीं होगा।

राजा ने पूछा, "कोई उपाय बताएँ, क्योंकि मैं चाहता हूँ कि राजा का पुत्र राजा ही बने।"

ज्योतिषियों ने मैं कहा कि इसका लालन-पालन व पूरा जीवन बड़ी सावधानी में बिताना होगा।

अर्थात् आपका पुत्र सिद्धार्थ कभी किसी बूढ़े व्यक्ति को न देखे, कभी किसी बीमार व्यक्ति को न देखे और कभी किसी मरे हुए व्यक्ति को न देखे।

जब तक ऐसा होगा तब तक वे राजा ही बने रहेंगे, अगर ऐसा नहीं हुआ तो वे साधु बन जाएँगे।

राजा शुद्धोधन ने अपने पुत्र सिद्धार्थ के लिए बढ़िया-से-बढ़िया, बड़े-बड़े महल, अच्छे-से-अच्छा भोजन, दास-दासियाँ और खाने-पीने के सामान आदि वस्तुओं के ढेर लगा दिए।

पिता ने पुत्र को सुख-सुविधाओं में इतना उलझा दिया कि उसे बाहर का संसार याद ही नहीं आया।

शुद्धोधन ने समझ लिया कि अब इतने सुखों के आगे साधु बनने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। वे निश्चिंत हो गए।

राजा शुद्धोधन ने बिल्कुल पक्की व्यवस्था कर रखी थी कि उनका पुत्र सिद्धार्थ जीवन में कभी भी वृद्ध, बीमार और मृतक व्यक्ति को देख न सके, क्योंकि वे अपने पुत्र को खोना नहीं चाहते थे।

सिद्धार्थ का जीवन ऐश्वर्य और सुख-सुविधाओं में बीत रहा था।

उनके जवान होने पर एक सुंदर कन्या यशोधरा से उनका विवाह हो गया।

विवाह हो जाने पर शुद्धोधन की आधी चिंता मिट गई, अब तो शादी हो गई, अब कहाँ जाएगा ?

अब तो मेरा पुत्र बंधन में बंध गया है। अब उसके कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता।

एक वर्ष बाद बेटे का भी जन्म हो गया। उसका नाम राहुल रखा गया।

अब राजा शुद्धोधन को बिल्कुल पक्का विश्वास हो गया कि अब यह कहीं नहीं जा सकता।

एक दिन सिद्धार्थ ने कहा कि पिताजी! आज तक मैंने कभी अपनी राजधानी नहीं देखी।

आपकी आज्ञा हो तो आज देख आऊँ। राजा ने कहा, "हाँ-हाँ, अवश्य जाओ, अपना शहर देखकर आओ।"

एक सारथी को भी साथ में भेजा गया कि जाओ राजकुमार को राजधानी घुमा-फिराकर लाओ।

फिर भी राजा ने चाक-चौबंद इंतजाम कर रखा था कि कहीं चूक न हो जाए।

सिद्धार्थ के लिए राजधानी के प्रमुख मार्ग खूब सजाए गए थे, पर घूमतेघूमते सिद्धार्थ ने थोड़ा उलटा मार्ग ले लिया।

वे उस मार्ग से गुजरने लगे, जहाँ पर तैयारी नहीं थी और आज उनको बहुत आश्चर्य हुआ, जब पहली बार उन्होंने एक बूढ़े आदमी को देखा, कमर झुकी हुई, पूरी चमड़ी में झुरियाँ पड़ी थीं।

वह परेशानी और दुःख से बेहाल था।

उसकी चाल बहुत धीमी थी।

बूढ़े की झुकी हुई कमर को देखकर सिद्धार्थ को एक झटका लगा और सारथी से उन्होंने पूछा, “क्या एक दिन मैं भी बूढ़ा हो जाऊँगा ?"

सारथी ने कहा, "हाँ राजकुमार! हर व्यक्ति के जीवन में तीन अवस्थाएँ आती हैं-बचपन, जवानी और बुढ़ापा। एक दिन तुम भी बुढ़ापे की अवस्था में जाओगे।

हे राजकुमार! यह संसार का नियम है। चाहे गरीब हो या अमीर, सबका शरीर शिथिल अर्थात् बूढ़ा होता है।"

राजकुमार सोच में पड़ गया। सारथी ने रथ को आगे बढ़ाया तो कुछ दूरी पर एक बीमार व्यक्ति मिला, जो रोगों से घिरा हुआ था।

उस पीड़ित व्यक्ति को देखकर राजकुमार का मन बहुत ही दुःखी हुआ।

राजकुमार ने पूछा, "इसको क्या हुआ है ?" सारथी ने कहा, "यह व्यक्ति बीमार है, इसलिए यह कराह रहा है।

इस संसार में दुःख और सुख दोनों हैं।

यह हैं अपने-अपने भाग्य की बात है कि कोई दुःखी है और कोई सुखी है।" "क्या मैं भी कभी बीमार हो सकता हूँ?" सारथी ने कहा, आप यह विचार अभी छोड़ दें।

समय बड़ा बलवान होता है। ये सारी बातें कर्मों पर निर्भर करती हैं।"

चाहे राजा हो या रंक, सुख-दुःख सब पर आते हैं।

अगर शरीर में कोई रोग आना है तो वह आएगा।

यह सब सुनकर राजकुमार सोच में पड़ गया। सारथी ने रथ को कुछ आगे बढ़ाया तो सामने से चार कंधों के ऊपर एक अरथी को जाते हुए देखा।

राजकुमार ने ऐसा पहली बार देखा था। उसने सारथी से पूछा, "यह क्या है ?"

"यह आदमी मर गया है।

यह मुरदा है। जो व्यक्ति मर जाता है, उसको बाँधकर श्मशान भूमि में ले जाते हैं। फिर वहाँ पर उसे जला दिया जाता है।"

राजकुमार ने कहा, “क्या सबको मरना पड़ता है?" "हाँ, सबको मरना पड़ता है। यह मृत्युलोक है।

जो जन्म लेता है, उसे कभी-ज-कभी अवश्य ही मरना पड़ता है।" "तो इसका मतलब यह हुआ कि ठीक इसी तरह से एक दिन मुझे भी मरना होगा, मेरी देह भी मुर्दा होगी और मुझको भी चार कंधों पर उठाकर ले जाया जाएगा।

मुझको भी ऐसे ही रस्सियों से बाँधा जाएगा।

मेरे भी आगे-पीछे घर के सदस्य रोएँगे-तड़पेंगे और जिस संसार को मैंने इकट्ठा किया है, वह सारा-का-सारा मुझ से छूट जाएगा।

इसका मतलब यह हुआ कि क्या एक दिन मैं भी मर जाऊँगा ? क्या एक दिन यशोधरा भी मर जाएगी? क्या एक दिन मेरा राहुल भी मर जाएगा ?"

सारथी ने कहा, "हाँ, राजकुमार! एक दिन मैं भी मरूँगा, आप भी मरेंगे, यशोधरा भी मरेंगी और राहुल भी मरेगा, क्योंकि यह सब मरने के लिए ही पैदा होते हैं।"

उस रात सिद्धार्थ सो न सके, सोचने लगे कि क्या संसार में इतना दुःख है, रोग है, बुढ़ापा है, और ऐसे में मैं खा-पीकर कैसे जी सकता हूँ ?

नहीं-नहीं, ऐसा मुझसे नहीं हो सकता।

मुझे खोजना होगा उस तत्त्व को जो दुःख, पीड़ा और शोक से रहित हो, जो भय, भ्रम और भूल से परे हो, जो अनंत आनंद से भरा हो।

जिसे पाकर फिर और कुछ पाने की इच्छा न हो।

सिद्धार्थ वैराग्य के शिखर तक पहुँच चुके थे।

बस उसी रात को उन्होंने घर छोड़ दिया।

सारथी से कहा कि नगर की सीमा से दूर ले चलो।

नगर के बाहर पहुँचकर सारथी को लौटा दिया।

फिर, कई दिनों तक वन में चलते गए। एक घने पीपल के वृक्ष के नीचे आसन लगाकर ध्यान में लीन हो गए।