बुद्ध और अंगुलिमाल

बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी - अंगुलिमाल की कहानी

'गुलिमाल कुख्यात लुटेरा और हत्यारा था।

जो भी सामने आ जाता, उसे ही लूट लेता या यदि सामनेवाला ना-नुकर करता तो उसकी तलवार उसका गला नापने को तैयार रहती थी।

माला में पिरोने के लिए वह अपने शिकार अधिकांश लोगों के हाथों की अंगुलियाँ काट लेता था।

वह अपने गले में अंगुलियों की माला पहनाता था, इसीलिए उसका नाम अंगुलिमाल पड़ा।

एक दिन महात्मा बुद्ध घने जंगल से होकर कहीं जा रहे थे दूर से अंगुलिमाल ने उन्हें देख लिया।

वह आनन-फानन में जा पहुँचा, उनके पास आकर बोला, "साधु, जो कुछ भी तुम्हारे पास हो, उसे निकाल दो , अन्यथा तुम्हारी जान की खैर नहीं।"

अंगुलिमाल की बात सुनकर बुद्ध मुसकराए और उसकी आँखों में गहराई से झाँककर बोले, "वत्स, मेरे पास दया और क्षमा जैसे रत्नों का भारी भंडार है।

वह तुम्हें सौंपता हूँ। झगड़े की क्या जरूरत है ?' बुद्ध का इतना कहना था कि मानो जादू हो गया।

अंगुलिमाल अपनी तलवार दूर फेंककर बुद्ध के चरणों में झुक गया और बोला, “धन्य हो महात्मन्, आज मैं मालामाल हो गया।"

यही कुख्यात लुटेरा अंगुलिमाल बौद्धभिक्षु बन गया।