बुद्ध का शिष्य

हाभारत में बताया गया है कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का महाभारत वरदान प्राप्त था, अर्थात् वे स्वयं जब तक मृत्यु का आह्वान न करें, काल उनके पास भी नहीं फटक सकता था।

इसी तरह अमरता को लेकर अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।

महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भिक्षाटन पर जा रहे थे।

रास्ते में शिष्यों ने एक पौधे की तरफ इशारा करते हुए पूछा, भंते! इस पौधे की उम्र क्या है ?'

बुद्ध ने बताया कि यह अमर वृक्ष है, इसकी उम्र अंतहीन है।

तभी एक शिष्य ने उस वृक्ष को जड़ से उखाड़ फेंक दिया और बुद्ध से बोला, “गुरुवर ! मैंने उसे एक ही पल में उखाड़कर समाप्त कर दिया।"

बुद्ध मुसकराए और निश्शब्द आगे बढ़ गए।

महीनों बाद जब चातुर्मास बिताकर वे उसी रास्ते से लौटे तो सभी ने उस पौधे को वापस हरा-भरा देखा।

वृक्ष को उखाड़ने वाले शिष्य ने पूछा, "तथागत, आपको इस पौधे की अनश्वरता का कैसे पता चला?'

बुद्ध ने उत्तर दिया, मैं इस नन्हे से पौधे की अनंत जिजीविषा को जानता था।

यह जीवन और अमरता की पहली शर्त है, जिसमें यह भावना है, वही जीवन को दीर्घ बना सकता है।