साथ 'धना के मार्ग को सभी धर्मों में दुष्कर माना गया है।
एक अच्छा साधक ऐसे गुणों से युक्त होता है, जो आत्मज्ञान के प्रकाश से दूसरों को भी आलोकित करता है।
एक बार महात्मा बुद्ध से उनके एक शिष्य ने प्रश्न किया, "भगवान्, श्रेष्ठ साधक के क्या लक्षण होते हैं ?"
तथागत ने प्रश्न का इस प्रकार उत्तर दिया, "चूहे चार प्रकार के होते हैं।
एक वे, जो स्वयं खोदकर बिल बनाते हैं, लेकिन उसमें रहते नहीं।
दूसरे वे, जो बिल में रहते हैं, पर स्वयं नहीं खोदते। तीसरे वे, जो स्वयं बिल बनाते भी हैं, और उसमें रहते भी हैं।
चौथे वे, जो न तो बिल बनाते हैं और न ही बिल में रहते हैं।
"इसी प्रकार साधक भी चार भागों में बाँटे जा सकते हैं।
एक वे, जो शास्त्र पढ़ते हैं, पर जो शास्त्रज्ञान भी प्राप्त करते हैं और सत्य का अनुभव भी।
चौथे वे, जो न तो शास्त्र का अभ्यास करते हैं और न सत्य का आचरण ही।
अब तुम ही निर्णय करो कि श्रेष्ठ साधक कौन हैं ?"