एक जंगल में एक विषैला साँप रहता था। वह जंगल में एक कोने में रहता था। और वहां जाने का साहस कोई नहीं करता था। एक दिन वहाँ एक साधु तपस्या करने आया।
साधु ने सांप को समझाया कि वह बुरे कर्म छोड़ दे और लोगों को न डंसा करे।
उसने अपनी सिद्धियों से सांप का विष भी समाप्त कर दिया। कुछ दिनों बाद साधु जंगल से चला गया। कुछ दिनों बाद वह जब लौटा तो उसने सांप को अधमरी हालत में पाया। चिंतित होकर साधु ने सांप से इसका कारण पूछा।
सांप बताने लगा, जब मैंने लोगों को डँसना बंद कर दिया तो उन्होंने मुझसे डरना ही बंद कर दिया।
वे लोग मुझे पत्थर मारने लगे। इतना ही नहीं मुझे खाना तक नहीं मिलता, इसलिए मैं कमजोर भी हो गया हूँ।
इस पर साधु बोला, जो तुम्हें हानि पहुंचाते हैं उनसे तुम्हें अपनी सुरक्षा तो करनी ही चाहिए। और प्राकृतिक भोजन भी किया करो। सांप ने उसकी बात मान ली और सुखी जीवन बिताने लगे।