बुद्ध की दृष्टि

गौतम 'तम बुद्ध एक बार अपने शिष्यों के साथ प्रवास पर निकले।

एक नगर से दूसरे नगर तक जाने की राह में वन पड़ता था।

वन क्षेत्र में प्रवेश करने के साथ ही कुछ दूर चलने पर बुद्ध एक जगह रुक गए।

पीछे आ रहे शिष्यों का समूह भी उन्हें देख उसी स्थान पर रुका।

लेकिन वहाँ रुके रहना शिष्यों के लिए मुश्किल हो गया, क्योंकि सामने एक क्षतविक्षत शव पड़ा था और उसकी दुर्गंध वातावरण में फैल रही थी।

शिष्यों ने अपने वस्त्र से नाक बंद कर ली, लेकिन बुद्ध शव की ओर टकटकी लगाए देखते रहे।

एक शिष्य ने साहस कर विनम्रतापूर्वक गौतम बुद्ध से अनुरोध किया, भगवान्, यहाँ से शीघ्र चलना ही उचित होगा।

यहाँ शव पड़ा है और बहुत दुर्गंध आ रही है।

बुद्ध मुसकराए और शिष्यों की ओर उन्मुख होते हुए बोले, "बताइए इस सबमें सौंदर्य दिखाई देता है ?"

शिष्यों ने कहा, भगवन्, यह कैसा प्रश्न है ?

सौंदर्य और शव में! जीवन था तब तक सौंदर्य, अब तो सब समाप्त हो गया।"

बुद्ध ने शव की ओर इशारा करके बताया, "देखो जब कभी यह व्यक्ति जीवित रहा होगा, इसकी दंत पंक्तियाँ अद्वितीय रही होंगी।

मृत्यु के बाद भी इसके दंत देखकर यही साबित होता है।" वहाँ खड़े सभी शिष्यों ने दृष्टि डाली, तो पाया बुद्ध सही कह रहे थे।

तब शिष्यों को भान हुआ कि शव में भी अच्छाई हो सकती है।

दरअसल सौंदर्य निर्जीव में भी नजर आ सकता है, केवल शर्त यह है कि दृष्टि बुद्ध के समान बुराई में भी अच्छाई देखनेवाली होनी चाहिए।

गुलाब की एक शाखा में फूल की तुलना में काँटें ही अधिक होते हैं, पर हम फूल चुनते हैं, काँटें नहीं।

ठीक इसी तरह किसी में सौ बुराइयाँ नहीं, अच्छाई देखनी चाहिए।