राजा कृष्णदेव राय पशु-पक्षियों से बहुत प्यार करते थे।
एक दिन एक बहेलिया राजदरबार में आया।
उसके पास पिंजरे में एक सुंदर व रंगीन विचित्र किस्म का पक्षी था।
वह राजा से बोला, 'महाराज, इस सुंदर व विचित्र पक्षी को मैंने कल जंगल से पकड़ा है।
यह बहुत मीठा गाता है तथा तोते के समान बोल भी सकता है।
यह मोर के समान रंग-बिरंगा ही नहीं है बल्कि उसके समान नाच कर भी दिखा सकता है।
श दिया।तभी तेनालीराम अपने स्थान से उठा और बोला,
'महाराज, मुझे नहीं लगता कि यह पक्षी बरसात में मोर के समान नृत्य कर सकता है बल्कि मुझे तो लगता है कि यह पक्षी कई वर्षों से नहाया भी नहीं हैं।'
तेनालीराम की बात सुनकर बहेलिया डर गया और दुखी स्वर में राजा से बोला, 'महाराज, मैं एक निर्धन बहेलिया हूं।
पक्षियों को पकड़ना और बेचना ही मेरी आजीविका है।
अतः मैं समझता हूं कि पक्षियों के बारे में मेरी जानकारी पर बिना किसी प्रमाण के आरोप लगाना अनुचित है।
यदि मैं निर्धन हूं तो क्या तेनालीजी को मुझे झूठा कहने का अधिकार मिल गया है।'
बहेलिए की यह बात सुन महाराज भी तेनालीराम से अप्रसन्न होते हुए बोले, 'तेनालीराम, तुम्हें ऐसा कहना शोभा नहीं देता।
क्या तुम अपनी बात सिद्ध कर सकते हो ?'
'मैं अपनी बात सिद्ध करना चाहता हूं, महाराज।'
यह कहते हुए तेनालीराम ने एक गिलास पानी पक्षी के पिंजरे में गिरा दिया।
पक्षी गीला हो गया और सभी दरबारी पक्षी को आश्चर्य से देखने लगे।
पक्षी पर गिरा पानी रंगीन हो गया और उसका रंग हल्का भूरा हो गया।
राजा तेनालीराम को आश्चर्य से देखने लगे।
तेनालीराम बोला, 'महाराज यह कोई विचित्र पक्षी नहीं है बल्कि जंगली कबूतर है।'
'परंतु तेनालीराम तुम्हें कैसे पता लगा कि यह पक्षी रंगा गया है ?'
'महाराज, बहेलिए के रंगीन नाखूनों से। पक्षी पर लगे रंग तथा उसके नाखूनों का रंग एक समान है।'
अपनी पोल खुलते देख बहेलिया भागने का प्रयास करने लगा, परंतु सैनिकों ने उसे पकड़ लिया।
राजा ने उसे धोखा देने के अपराध में जेल में डाल दिया और उसे दिया गया पुरस्कार अर्थात 50 स्वर्ण मुद्राएं तेनालीराम को दे दिया गया।