रिश्वत का खेल

कृष्णदेव राय कला प्रेमी थे

इसीलिए कलाकारों का प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए उनके अच्छे प्रदर्शन के लिए उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित करते रहते थे।

कलाकारों को सम्मानित करने से पहले वे एक बार तेनालीराम से जरुर पूछते थे।

महाराज की ये बात तेनालीराम के विरोधियों को बहुत खलती थी।

तेनालीराम कुछ दिनों से राजदरबार में नहीं आ रहा था जिसका फायदा उठाते हुए उसके विरोधियों ने महाराज के कान भरने शुरू कर दिए।

उनमे से एक विरोधी महाराज से बोला, “महाराज तेनालीराम रिश्वतखोर है।”

दूसरा बोला, “महाराज वह जिसको जितना बड़ा पुरस्कार दिलवाता है उससे उतनी ही बड़ी रिश्वत लेता है।”

अब रोज़ दरबार में महाराज को ये ही सब सुनने को मिलता।

जिससे महाराज को भी तेनालीराम पर शक होने लगा।

जब कुछ दिनों बाद तेनालीराम ने राजदरबार में आना शुरू कर दिया तो महाराज ने उससे कुछ कहा तो नही लेकिन अब उससे कुछ भी पूछना उन्होंने बंद कर दिया।

अब तेनालीराम को भी लगने लगा की उसके पीछे जरुर कुछ बात हुई है जिसकी वजह से महाराज ने मुझे पूछना बिल्कुल बंद कर दिया है।

एक बार दरबार में बहुत सारे कलाकार आए हुए थे ।

उनमें से तेनालीराम ने एक को छोडकर सब को पुरस्कार देने को कहा लेकिन महाराज ने उसका बिलकुल उल्टा किया।

उन्होंने सारे कलाकारों को खाली हाथ ही भेज दिया और उस एक को ढेरों इनाम देकर विदा किया।

महाराज का ये रवैया देखकर तेनालीराम अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा था।

वही तेनालीराम के विरोधी ये सब देखकर बहुत खुश थे।

एक बार दरबार में एक गायक आया।

उसने अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए महाराज की आज्ञा मांगी।महाराज ने अगले दिन उसे संगीतशाला में आकर अपनी कला का प्रदर्शन करने का आदेश दिया।

अगले दिन उस गायक का प्रदर्शन देखने के लिए संगीतशाला में काफी भीड़ जमा हो गई थी।

महाराज के आते ही उसने गायन शुरू किया तो चारों ओर वाह -वाह होने लगी।

गायन समाप्त होते ही तेनालीराम बोला, “तुमने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है।

मैंने तुम्हारे जैसा कलाकार आज तक नही देखा।

तुम्हारे प्रदर्शन के लिए तुम्हें कम से कम पंद्रह हज़ार मुद्राएँ मिलनी चाहिए।”

महाराज तेनालीराम की ओर देखते हुए बोले, “सच में तुम्हारा प्रदर्शन तो काबिले तारीफ था लेकिन तुम्हें देने के लिए हमारे पास इतना धन ही नही की हम तुम्हें दे सके।

बेचारा गायक निराश होकर अपना सामान बटोरने लगा कि तभी तेनालीराम ने एक पोटली लाकर उसे थमा दी।

तभी राजपुरोहित बोला, “ये तो महाराज का अपमान हो रहा हैं।

जब आपने उस कलाकार को कुछ नहीं दिया तो तेनालीराम को देने की क्या जरुरत थी।”

यह सुनते ही महाराज गुस्से से लाल- पीले हो गए ।

उन्होंने सैनिकों को तेनालीराम और गायक को पकड़कर अपने पास लाने का आदेश दिया।सैनिक गायक और तेनालीराम को पकड़कर महाराज के पास ले आए।

महाराज ने एक सेवक से उस पोटली को छिनकर उसे खोलने का आदेश दिया।जैसे ही सेवक ने पोटली खोली तो उसमे मिटटी का खाली बर्तन था।

जिसे देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग अचंभित थे।

महाराज ने तेनालीराम से पूछा , “ तुमने ये खाली बर्तन क्यूँ दिया है ?” तेनालीराम बोला, “महाराज यह गायक बहुत दूर से आपके पास आया था।

मैंने सोचा पुरस्कार न सही कम से कम इस खाली बर्तन में वाहवाही भर कर ले जाएगा।

इसीलिए मैंने ये खाली बर्तन इसे दे दिया।

तेनालीराम का जवाब सुनते ही महाराज का गुस्सा फुर्र हो गया और उन्होंने उस गायक को पन्द्रह हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ इनाम के रूप में दे दी।

इस प्रकार तेनालीराम ने अपने बुद्धि बल से अपने विरोधियों की चाल पर पानी फेर दिया।