एक दिन बुद्ध का एक शिष्य पास के गांव से मठ लौट रहा था। रास्ते में उसे नदी पार करनी थी।
उस समय नदी किनारे कोई नाव नहीं थी। शिष्य हर हाल में अपने गुरु के सायंकालीन प्रवचन चाहता था, इसलिए वह चलकर ही नदी पार करने लगा।
बुद्ध के ध्यान में वह इतना लीन हो गया कि उसे पानी के स्तर पर भी ध्यान नहीं दिया।
अचानक उसका ध्यान गया तो उसने पाया कि पानी गर्दन तक आ गया है। वह डर के मारे चिल्लाने लगा, हे भगवान ! मैं तो बीच नदी में खड़ा हूँ।
उसने फिर से अपनी आँखें बंद कर ली और बुद्ध के उपदेशों को याद करने लगा। इस तरह से वह चलते-चलते नदी के दूसरे तट तक पहुंच गया। उसके विश्वास ने उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने में सहायता की।