किसी जंगल में एक गीदड़ रहता था।
वह अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था।
उसकी हर इच्छा को पूरी करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था ।
जंगल के सारे जानवर उनका प्यार देखकर दंग रहते थे और उनका प्यार सबके लिए आदर्श माना जाता था ।
दोनों का व्यवहार बहुत अच्छा था।
कभी भी किसी के साथ लड़ाई झगड़ा नहीं करते थे।
अपने पड़ौसियों का बड़ा आदर करते थे।
सभी की सहायता करना उनका धर्म था।
इसी प्रकार बड़ी सुख-शान्ति से उनका जीवन कट रह था।
एक दिन दोनों पति-पत्नी सैर करने के लिए चल पड़े।
गीदड़ी कुछ दूर चलने के बाद रुक गई, उसकी सांस तेजी से चल रही थी।
लगता था, वह बहुत थक गयी थी ।
यह देख गीदड़ ने घबराकर पूछा- "अरे, यह क्या ? प्रिये! क्या बात है ?
तुम बहुत थकी हुई सी लग रही हो ?"
गीदड़ी ने बुझी-सी आवाज में उत्तर दिया- "स्वामी बात यह है; मैं बहुत कमजोरी महसूस कर रही हूं।
आजकल मुझे शीघ्र ही थकान - सी हो जाती है ।
" पत्नी की यह बात सुनकर गीदड़ ने उसे सहारा देकर बैठाया और कहा - "तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया ?
अच्छा तो तुम यहां बैठो।
मैं तुम्हारे लिए कहीं से अच्छा-सा मांस लेकर आता हूं।" -
मैं "मुझे पशुओं का मांस खाने की इच्छा नहीं है।
यदि आप मेरे लिए रोहू मछली ला दें, तो कितना अच्छा होगा।
उसका मांस खाने से मैं तुरन्त ठीक हो जाऊंगी।” गीदड़ी बोली ।
"अरे यह कौन-सी बड़ी बात है ? तुमने पहले क्यों नहीं बताया ?
तुम्हारी कोई इच्छा हो मैं उसे पूरी न करूं । ऐसा कैसे हो सकता है ?"
कहते हुए गीदड़ ने बड़े प्यार से उसके गले में अपने पंजे डाले ।
वह गीदड़ी को बहुत प्यार करता था।
उसकी हर इच्छा खुशी से पूरी करता था ।
पशुओं का मांस लाना तो उसके बांये हाथ का खेल था, लेकिन पानी के जानवरों से उसका दूर तक वास्ता नहीं था।
वह इसी उलझन में पड़ गया कि किस तरह पानी में उतरकर रोहू मछली पकड़ी जाए, जिसे खाकर उसकी पत्नी की तबीयत ठीक हो जाए ।
वह अपनी पत्नी को घर वापस छोड़कर मछली लाने का आश्वासन देकर चल पड़ा।
वह रास्ते भर सोचता जा रहा था कि पत्नी से वादा तो कर लिया, किन्तु अब क्या होगा ?
मछली लाना खेल नहीं था।
गीदड़ की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
यही सोचता हुआ वह उदास होकर चलता-चलता नदी के किनारे जा पहुंचा।
उसे मालूम था कि नदी में बहुत सी मछलियां हैं, लेकिन उन्हें कैसे पकड़ा जाए ?
चारों ओर घना अंधकार फैला था।
पत्नी के प्यार में दीवाना होकर वह यहां तक पहुंच गया था ।
वह बार-बार यही सोच रहा था कि खाली हाथ पत्नी के सामने किस मुंह से जाए, उसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
पत्नी भी सोचगी कि उसका पति इतनी छोटी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकता।
इसी सोच-विचार में बैठा हुआ वह एकटक नदी के जल को देख रहा था |
मैं अचानक उसने एक अहाट सुनी और सामने देखा कि दो ऊदबिलाव पानी से बाहर आ रहे थे।
उनके पास मछली थी ।
गीदड़ की आंखों में चमक आ गयी।
उसने ध्यानपूर्वक मछली को देखा तो पहचान गया कि यह तो रोहू मछली है।
इसे ही मेरी पत्नी ने मांगा था, किन्तु मैं इसे कैसे प्राप्त कर सकता हूं ?
निराश होकर गीदड़ एक कौने में बैठ गया | वह ललचाई दुष्टि से एकटक मछली को देखे जा रहा था।
उसका दिमाग अपना कार्य करने में लगा था ।
उसने देखा दोनों ऊदबिलाव मछली को बीच में रखे हुए बैठे थे।
एक ऊदबिलाव दूसरे से बोला- "बड़ी समस्या है मित्र! मछली तो एक है और हम दो।
इसका बंटवारा कैसे किया जाए ?”
मछली को बीच में रखकर दोनों सोचने लगे।
उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि उन्हें एक-दूसरे पर विश्वास भी नहीं था।
दोनों को सन्देह था कि बांटने वाला बड़ा हिस्सा ले लेगा या बराबर हिस्सा न मिलने पर झगड़ा होगा, जिससे उनकी पुरानी मित्रता दुश्मनी में बदल जाएगी।
उधर चुपचाप बैठा हुआ गीदड़ यह सब तमाशा देखे जा रहा था।
उसकी नजर मछली पर ही टिकी थी।
उनकी बातें सुनकर गीदड़ समझ गया कि बंटवारे को लेकर इनका झगड़ा अवश्य होगा।
वह सोचने लगा, क्या यही अच्छा होता, यदि वे उससे बांटने को कहते।
यदि वे उसे बंटवारा करने के लिए कहेंगे, तो काटने के लिए औजार चाहिए ।
उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा।
उसने इधर-उधर नजर दौड़ाई ।
उसके सामने वृक्ष के नीचे एक लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी को पास रखकर आराम से सो रहा था ।
कुल्हाड़ी देखकर गीदड़ बहुत खुश हो गया।
काम बन गया, उसने मन में सोचा।
यह सोचकर वह पूरी सावधानी से कुल्हाड़ी उठा लाया, लकड़हारे को इसका कुछ पता न लगा
गीदड़ ने वापस आकर देखा कि दोनों ऊदबिलाव आपस में झगड़ रहे हैं, अन्त में उन्होंने निर्णय किया यह बंटवारा किसी दूसरे से करवाया जाए।गीदड़ इसी मौके की प्रतीक्षा कर रहा था ।
वह झट से उन दोनों के पास आकर बोला-"राम-राम भाइयों! आपस में मत झगड़ो।
लड़ाई करने से कुछ निष्कर्ष नहीं निकल पाएगा।
लाओ मैं ही इस मछली को तुम दोनों में बराबर-बराबर बांट देता हूं।
इससे तुम्हारा झगड़ा समाप्त हो जाएगा।"
दोनों ऊदबिलाव खुश होकर बोले- "हमें तुम्हारा फैसला मंजूर है।
इस मछली को हम दोनों में बांट दो।"
गीदड़ ने उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहा - "मैं बिल्कुल सही बंटवारा करूंगा।
लाओ, मछली मुझे दो।" ऐसा कहकर उसने मछली ले ली।
गीदड़ ने मछली को कुल्हाड़ी से काटा और सिर तथा दुम को अलग-अलग कर दिया।
फिर सिर को उठाकर एक ऊदबिलाव को देते हुए कहा- "लो भाई, सिर तुम्हारे हिस्से में आता है।
इसे तुम खा लो।" और फिर दुम वाला हिस्सा दूसरे ऊदबिलाव को देते हुए कहा- "लो भाई, यह पूंछ तुम्हारी है।
इसे तुम ले लो।" दोनों ऊदबिलाव अपना-अपना हिस्सा लेकर सन्तुष्ट हो गए ।
दो भाग तो गीदड़ ने बांट दिये, तीसरा भाग भी तो बचा पड़ा था।
दोनों ऊदबिलाव देखने लगे कि यह हिस्सा किसे मिलता है।
गीदड़ ने उनसे पूछा- "भाइयों आप इस भाग की ओर क्यों देख रहे हैं ?" ऐसा कहते हुए उसने मछली का टुकड़ा अपने पास रख लिया ।
दोनों ऊदबिलाव हैरानी से एक-दूसरे की ओर देखकर बोले- "क्या यह टुकड़ा हमें नहीं मिलेगा ?"
गीदड़ ने गुस्से से उत्तर दिया- "अरे भई! आप लोग भी बड़े मूर्ख हैं, जो इतना नहीं समझते कि मैंने आप लोगों का इतना बड़ा काम किया है।
उसका मेहनताना मुझे मिलना ही चाहिए।"
दोनों ऊदबिलाव एक साथ बोले- "तो क्या यह टुकड़ा तुम ले जाओगे ?" गीदड़ ने कहा - "मैंने अपनी मजदूरी ही ली है।
मैं मुफ्त में काम नहीं करता ।"
ऐसा कहकर वह गीदड़ वहां से भाग खड़ा हुआ।
दोनों ऊदबिलाव निराश होकर गीदड़ को जाता हुआ देखते रहे और कहने लगे- "हमने एक-दूसरे पर विश्वास न करके तीसरे पर विश्वास किया।
इससे हमें इतना बड़ा नुकसान सहना पड़ा।