हज़ारों साल पहले किसी वन में एक बुद्धिमान बंदर रहता था।
वह हज़ार बंदरों का राजा भी था।
एक दिन वह और उसके साथी वन में कूदते-फाँदते ऐसी जगह पर पहुँचे जिसके निकट क्षेत्र में कहीं भी पानी नहीं था।
नयी जगह और नये परिवेश में प्यास से व्याकुल नन्हे वानरों के बच्चे और उनकी
माताओं को तड़पते देख उसने अपने अनुचरों को तत्काल ही पानी के किसी स्रोत को ढूंढने की आज्ञा दी।
कुछ ही समय के बाद उन लोगों ने एक जलाशय ढूंढ निकाला।
प्यासे बंदरों की जलाशय में कूद कर अपनी प्यास बुझाने की आतुरता को देख कर वानरराज ने उन्हें रुकने की चेतावनी दी,
क्योंकि वे उस नये स्थान से अनभिज्ञ था।
अत: उसने अपने अनुचरों के साथ जलाशय और उसके तटों का सूक्ष्म निरीक्षण व परीक्षण किया।
कुछ ही समय बाद उसने कुछ ऐसे पदचिह्नों को देखा जो जलाशय को उन्मुख तो थे मगर जलाशय से बाहर को नहीं लौटे थे।
बुद्धिमान् वानर ने तत्काल ही यह निष्कर्ष निकाला कि उस जलाशय में निश्चय ही किसी खतरनाक दैत्य जैसे प्राणी का वास था।
जलाशय में दैत्य-वास की सूचना पाकर सारे ही बंदर हताश हो गये।
तब बुद्धिमान वानर ने उनकी हिम्मत बंधाते हुए यह कहा कि वे दैत्य के जलाशय से फिर भी अपनी प्यास बुझा सकते हैं
क्योंकि जलाशय के चारों ओर बेंत के जंगल थे जिन्हें तोड़कर वे उनकी नली से सुड़क-सुड़क कर पानी पी सकते थे।
सारे बंदरों ने ऐसा ही किया और अपनी प्यास बुझा ली।
जलाशय में रहता दैत्य उन्हें देखता रहा मगर क्योंकि उसकी शक्ति जलाशय तक ही सीमित थी,
वह उन बंदरों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका ।
प्यास बुझा कर सारे बंदर फिर से अपने वन को लौट गये।