पेट का दूत

Pet Ka Doot : Jataka Katha

वाराणसी में एक राजा राज करता था।

उसके दो ही शौक थे।

एक तो वह अतिविशिष्ट व्यंजनों का भोजन करना चाहता था

और दूसरा वह यह चाहता था कि लोग उसे खाता हुआ देखें।

एक दिन जब वह लोगों के सामने बैठा नाना प्रकार की चीजें खा रहा था,

तभी एक व्यक्ति चिल्लाता हुआ उस के पास आया।

वह कह रहा था, "वह एक दूत है।"

सिपाहियों ने जब उसे रोकना चाहा तो राजा ने राजकीय शिष्टाचार के अनुरुप

उस व्यक्ति को अपने बराबर के आसन पर बिठा अपने साथ ही खाना खिलाया।

भोजन के बाद राजा ने जब उससे पूछा कि वह किस देश का दूत था तो

उसने कहा कि वह किसी देश का दूत नहीं बल्कि मात्र अपने भूखे पेट का दूत था ।

उसने यह कहा, “हर कोई पेट का दूत होता है और पेट की क्षुधा बुझाने के लिए अनेकों उपक्रम करता है ।

अत: वह भी एक दूत है ; और क्षम्य है ।”

राजा को उसका तर्क पसंद आया और उसने उस व्यक्ति को माफ कर दिया।