महाजनक का संयास

Mahajanak Ka Sanyas : Jataka Katha

मिथिला के एक राजा की मृत्यु के पश्चात् उसके दो बेटों में भयंकर युद्ध हुआ ।

अंतत: बड़ा भाई मारा गया और छोटा भाई राजा बना ।

बड़े भाई की पत्नी अपने पुत्र को लेकर एक वन में किसी संयासी की शरण में रहने लगी ।

वहीं उसने अपने बढ़ते पुत्र को अपने दादा और पिता के

राज्य को पुन: प्राप्त करने के लिए उत्प्रेरित किया।

सोलह वर्ष की अवस्था में पुत्र ने पैतृक राज्य प्राप्त करने के लिए धन और सेना इकट्ठा करने की ठानी ।

अत: उसने सुवर्णभूमि को प्रस्थान किया।

किन्तु रास्ते में उसका जहाज़ डूब गया।

समुद्र में तैरते हुए उसने किसी तरह अपनी जान बचायी।

बन में घूमते हुए उसने एक आम्र वाटिका में आश्रय लिया ।

उसी दिन मिथिला के राजा की मृत्यु हो गई, जो और कोई नहीं उस कुमार का चाचा ही था।

जब लोग राजसलाहकारों के साथ ढोल बजाते हुए एक नये राजा की खोज में जा रहे थे तो उनकी दृष्टि आम्र वाटिका में सोते कुमार पर पड़ी।

मिथिला- राजसलाहकारों ने किशोर के शरीर पर राजा-योग्य कई लक्षण देखे।

अत: उसने उसे जगा कर महल में आमंत्रित किया।

वहाँ राजकुमारी सीवली ने उससे कुछ पहेलियाँ पूछी जिसका जवाब कुमार ने बड़ी बुद्धमानी से दिया।

फिर दोनों की शादी करा दी गयी और वह किशोर मिथिला का नया राजा बना दिया गया।

इस प्रकार कुमार ने अपने दादा और पिता का राज्य पुन: प्राप्त कर लिया।

सिवली से उसे एक पुत्र की भी प्राप्ति हुई।

कालान्तर में महाजनक संयास को उन्मुख हुआ और सीवली की प्रत्येक

चेष्टा के बाद भी गृहस्थ जीवन का परित्याग कर संयासी बन गया।