यह बात उस समय की है जब अस्पृश्यता अपने चरम पर थी।
एक बार एक धनी सेठ की कन्या अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा के लिए एक उद्यान जा रही थी।
तभी मार्ग में उसे मातंग नाम का एक व्यक्ति दिखा जो जाति से चाण्डाल था।
अस्पृश्यता की परंपरा को मानने वाली वह कन्या मातंग को देखते ही उल्टे पाँव लौट गई।
उस कन्या के वापिस लौटने से उसकी सहेलियाँ और दासियाँ बहुत क्रुद्ध हुईं और उन्होंने मातंग की खूब पिटाई की।
मार खाकर मातंग सड़क पर ही गिर पड़ा।
उसका खून बहता रहा मगर कोई भी उसकी मदद को नहीं आया।
मातंग को जब होश आया तो उसने उसी क्षण अस्पृश्यता के विरोध का निश्चय किया।
वह उस कन्या के घर के सामने पहुँचा और जहाँ वह भूख-हड़ताल पर बैठ गया।
सात दिनों तक उसने न तो कुछ खाया और न ही पिया।
बस, वह इसी मांग पर अड़ा रहा कि उसकी शादी उस कन्या से तत्काल करवा
दी जाय वरना वह बिना खाये-पिये ही अपने प्राण त्याग देगा।
सात दिनों के बाद मातंग मरणासन्न हो गया तब उस कन्या के पिता को यह भय हुआ कि
अगर मातंग वहाँ मरेगा तो उसके मृत शरीर को कौन हाथ लगाएगा, वहाँ से हटाएगा ?
अत: उस भय के कारण पिता ने अपनी ही कन्या को जबरदस्ती मातंग के पास ढकेल अपना दरवाज़ा बन्द कर लिया ।
मातंग ने तब अपनी हड़ताल तोड़ी और उस कन्या के साथ विवाह रचाया।
फिर उसने अपने गुणों और कर्मों से पहले अपनी पत्नी को विश्वास दिलाया
कि वह किसी भी जाति के व्यक्ति से कम गुणवान् नहीं था।
पत्नी को विश्वास दिलाने के बाद उसने अपने नगरवासियों को भी यह विश्वास दिलाया कि वह एक महान् गुणवान् व्यक्ति था।
एक बार उस नगर के किसी ब्राह्मण ने उसका अपमान किया तो लोगों ने
उस ब्राह्मण को पकड़ उसके पैरों पर गिर माफी मांगने पर विवश किया।
माफी मांगने के बाद वह ब्राह्मण किसी दूसरे राज्य में चला गया।
संयोग से मातंग भी एक बार उसी राज्य में पहुँचा, जहाँ उस ब्राह्मण ने शरण ली थी।
मातंग को वहाँ देख उस ब्राह्मण ने उस देश के राजा के कान भरे।
उसने राजा को बताया कि मातंग एक खतरनाक जादूगर है, जो उसके राज्य का नाश करा देगा ।
तब राजा ने अपने सिपाहियों को बुला तुरंत ही मातंग का वध करने की आज्ञा दी ।
ब्राह्मण के षड्यन्त्र से अनभिज्ञ मातंग जब भोजन कर रहा था,
तभी सिपाहियों ने अचानक उस पर हमला बोला और उसकी जान ले ली।
मातंग के संहार से प्रकृति बहुत कुपित हुई ।
कहा जाता है, उसी समय आसमान से अंगारों की वृष्टि हुई जिससे वह देश पूरी तरह से जलकर ध्वस्त हो गया ।
इस प्रकार बोधिसत्व मातंग की हत्या का प्रतिशोध प्रकृति ने लिया।