दैत्य का संदूक

हिमालय की तराई में कभी एक बौद्ध साधु रहता था, जिसके उपदेश सुनने एक दबंग दुष्ट (दैत्य) भी आता था।

किन्तु दबंग दुष्ट अपनी दानवी(दमन करने की वृत्ति) प्रवृत्ति के कारण राहगीरों को लूटता था और उन्हें मारता था ।

एक बार उसने काशी के एक धनी सेठ की पुत्री और उसके अनुचरों की सवारी पर आक्रमण किया ।

दैत्य को देखते ही उस कन्या के सारे अनुचर अपने अस्र-शस्र छोड़ भाग खड़े हुए ।

सेठ की कन्या को देखकर दैत्य उस पर मुग्ध हो गया ।

उसने उसकी हत्या न कर उसके साथ ब्याह रचाया ।

इस डर से कि वह सुन्दर कन्या कहीं भाग न जाय वह उसे एक संदूक में बंद कर देता था ।

एक दिन वह दैत्य साधु से मिलने जा रहा था तभी उसकी नज़र एक सुन्दर झील पर पड़ी ।

गर्मी बहुत थी । इसलिए वह झील के पास आया ।

उसने अपने साथ लिए हुए संदूक बाहर निकाला ।

फिर संदूक को खोलकर कन्या को बाहर निकाला और उसे जलाशय में अपने हाथों से स्नान कराया ।

उसके बाद वह स्वयं जलाशय में स्नान करने लगा ।

मुक्त हो कन्या जलाशय के किनारे विचरण करने लगी ।

तभी कन्या की नज़र एक नव युवक पर पड़ी जो एक जादूगर भी था।

उस अत्यंत सुन्दर युवक को देख कन्या ने उसे इशारों से अपने पास बुलाया ।

फिर प्रेम-क्रीड़ा करने के लिए उसने उसे संदूक में बैठने को कहा ।

युवक जब वहाँ बैठ गया तब वह उसे अपने लिबास से ढंक कर स्वयं उसके ऊपर जा बैठी ।

नहा कर दैत्य जब लौटा तो उसने संदूक को बंद कर लिया।

दैत्य जब साधु के आश्रम में पहुँचा तो साधु ने उसका स्वागत करते हुए कहा, “आप तीनों का स्वागत है”।

साधु की बात सुन दैत्य चौंक गया क्योंकि वह नहीं जानता था कि कन्या और उसके अतिरिक्त भी कोई तीसरा उनके साथ था।

साधु की बात सुनते ही उसने संदूक को बाहर निकाला ।

ठीक उसी समय युवक संदूक से बाहर निकल रहा था ।

उस समय तक वह अपनी तलवार ध्यान से पूरी तरह खींच भी नहीं पाया था ।

अगर और कुछ क्षणों का विलम्ब होता तो वह निश्चित रुप से दैत्य का पेट फाड़ देता ।

दैत्य को देख युवक भाग खड़ा हुआ ।

साधु के वचन एवं ज्ञान को सुनने के कारण चूँकि दैत्य की जान बच गई थी इसलिए उसने साधु का धन्यवाद ज्ञापन किया ।

साधु ने तब उसे शीलवान् बनने की शिक्षा दी और उस कन्या को भी मुक्त करने का परामर्श दिया ।

उस दिन के बाद से दैत्य शीलव्रती बन गया ।