असली मां

भोली और चंचला - असली मां कौन है ?

लासपुर नामक गांव में भोली और चंचला नाम की दो सखियां रहती थीं । दोनों

अपने - अपने घर के आंगन में आकर बैठ जातीं और एक- -दूसरे के सुख - दुख की बातें करती ।

उन दोनों में इतना अधिक प्रेम था कि उन्होंने अपने - अपने आंगन को दो हिस्सों में बांटने वाली दीवार भी तोड़ दी थी ।

एक साथ उठना - बैठना , एक साथ खाना पीना ।

यहां तक कि वस्त्र आभूषण भी दोनों एक - दू -दूसरे की पसंद का पहनती ओढ़तीं ।

गर्ज यह कि बाकी गांव और गांव की औरतों से तो जैसे उन्हें कोई सरोकार ही नहीं था ।

उनकी इतनी गाढ़ी मित्रता देखकर गांव की कुछ औरते तो भीतर ही भीतर कुढ़ती भी थीं और इस फिराक में रहती कि किसी - न - किसी प्रकार उनमें फूट डलवाई जाए ।

लेकिन ईश्वर की ऐसी कृपा थी कि कोई भी औरत आज तक उनमें फूट डलवाने में सफल नहीं हो पाई थी ।

गांव के बड़े - बुजुर्ग कहते— “ भई , प्यार हो तो भोली और चंचला जैसा — दोनों दो जिस्म और एक जान हैं ।

सगी बहनों में भी इतना प्यार न होगा ।

" दोनों अपनी दुनिया में मस्त रहती थीं ।

कोई भी उनका भेद नहीं पा सकता था ।

उन दोनों की प्रबल इच्छा थी कि ईश्वर उनकी गोद भर दे और उनके बीच एक नन्हा मुन्ना खिलौना आ जाए ।

इसके लिए दोनों ही ईश्वर से प्रार्थना करतीं ।

औलाद की चाह हर नारी में होती है ।

हर औरत चाहती है कि वह यथासमय गां बनकर औरत होने का गौरव और पूर्णता हासिल करे ।

इस दुनिया में कौन औरत बांझ कहलाना पसंद करेगी ।

एक बार गांववालों ने देखा कि भोली और चंचला के बीच एक बच्चा आ गया है ।

बच्चा किसका है यह किसी को मालूम नहीं था ।

गांववालों ने दोनों में से किसी को ' भी गर्भावस्था के दौरान नहीं देखा था ।

मां बनने के भेद को भी दोनों औरतों ने पूरे गाव से छिपा लिया था ।

वे दोनों बच्चे का तन - मन से बराबर लालन - पालन करतीं ।

गाँव की कुछ औरतों ने पूछा भी कि बच्चा किसका है , लेकिन दोनों ही मुस्कराकर रह गई ।

गांववाले बच्चे को कभी भोली के पास देखते , कभी चंचला के पास चंचला उसे नहलाती - संवारती तो भोली लोरियां देकर सुला रही होती ।

इसी प्रकार समय गुजरता रहा और बच्चा भी बड़ा होने लगा ।

जब गांववालों को बच्चे की असली मां का पता नहीं चला तो धीरे - धीरे बच्चे की असली मां के विषय में जानने की उनकी उत्सुकता भी समाप्त हो गई ।

लेकिन कहते हैं कि समय बदलते देर नहीं लगती ।

किसके मन में कब और कैसे विचार आ जाएं , यह भी कोई नहीं जानता ।

एक दिन लोगों ने भोली और चंचला को लड़ते देखा तो पूरे गांव के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ।

समय के साथ - साथ उथल - पुथल हुए विचारों ने उन दोनों सखियों के बीच स्वार्थ का बीज बो दिया जिसके कारण उनमें आपसी मन - मुटाव पैदा हो गया ।

गांववालों के बीच जब उनके झगड़े का मसला आया तो पता चला कि वे दोनों बच्चे को लेकर झगड़ रही थीं ।

भोली कहती थी कि बच्चा उसका है और चंचला उसी के बच्चे को अब उसे सौंपने से इनकार कर रही है और चंचला कहती कि बच्चा उसका है ।

इसी बात को लेकर उन दोनों के बीच नफरत की दीवार खड़ी हो गई ।

गांव की पंचायत भी उनका फैसला न कर सकी , क्योंकि इस बात का कोई प्रत्यक्ष गवाह ही नहीं था कि वास्तव में उस बच्चे को जन्म किसने दिया है ।

कौन है उसकी असली मां उस समय तो झगड़े ने भयंकर रूप धारण कर लिया जब उनमें पंचायत में ही मारपीट की नौबत आ पहुंची ।

दोनों औरतें गांव के मुखिया के सामने चीख चीखकर कह रही थीं— ' ' यह मेरा बेटा है— मैंने इसे नौ महीने पेट में रखा है और मैंने ही जन्म दिया है । "

" देख भोली ! झूठ मत बोल- यह बच्चा मेरा है , मैंने इसे जन्म दिया है ।

आज तक तेरे कोई औलाद नहीं हुई इसलिए तेरे मन में पाप आ गया है कि कहीं लोग तुझे

बांझ न कहने लगे । "

" बांझ तो तू है जो मेरे लाल पर अपना हक जमा रही है पापिन — मैंने तो यह सोचकर गांववालों के सामने यह रहस्य नहीं खोला कि कहीं लोग तुझे बांझ न समझ बैठें कि यह बच्चा मेरा है ।

मैं तो यही सोचती थी कि जल्दी ही भगवान तेरी गोद भी भर देगा , मगर तू तो बांझ है जो मेरे बच्चे को हथियाकर अपना घर रोशन करना चाहती

है । "

“ अरे सुनो .... सुनो ....। "

गांव के मुखिया ने कहा- " इस प्रकार शोर मचाने से कुछ नहीं होगा— पहले यह बताओ कि तुम दोनों में यह विवाद कैसे उत्पन्न हो गया ।

बच्चे को तो तुम दोनों बराबर का लाड़ - प्यार दे रही थीं । " " मैं बताती हूं मुखिया जी । "

चंचला बोली- " पूरा गांव जानता है कि हम दोनों की शादी कुछ दिनों के अन्तर से ही हुई थी और पूरा गांव यह भी जानता है कि

शादी के कई वर्षों बाद तक हममें से कोई मां नहीं बन सकी ।

उस समय हम आपस में ही एक - दूसरे का सुख - दुख बांटा करती थीं ।

गांव की औरतों से भी हम इसलिए अधिक नहीं पुलती मिलती थी कि कहीं वे हमें वांझ समझकर हमसे नफरत न करें ।

हमें दुनिया के ताने न सुनने पड़ें । क्यों री भोली ! यह सच है ना ? "

" हां सच है मगर ...। "

' अब अगर - मगर मत कर ... " चंचला ने उसकी यात काटकर कहा- " मेरी बात पूरी होने दे मुखिया जी के सामने । ”

" मगर अब तू झूठ बोलेगी ... "

" अरी जब अब तक छूट नहीं बोली , तो अब क्या झूट बोलूंगी । "

" भोली ... " इससे पहले कि उन दोनों के बीच फिर से तू - तू , मैं - मैं शुरू होती कि मुखिया जी ने कहा-

' " तुम चुप रहो और इसे अपनी बात पूरी कर लेने दो- हां तो चंचला , आगे बताओ कि क्या हुआ ... ? "

" होना क्या था मुखिया जी तभी एक दिन भगवान ने मेरी सुन ली और मेरा पांव भारी हो गया मैंने यह खुशखबरी भोली को दी

तो यह खुश होने की बजाय उदास हो गई — जब मैंने इससे इसकी उदासी का कारण पूछा तो इसने कहा- बहन चंचला !

हमारी शादियां एक साथ हुई थीं , भगवान ने तेरी तो गोद भर दी मगर मैं न जाने कब मां बनूंगी और पता नहीं बनूंगी भी या नहीं — गांव की औरतें तो तेरे मां बनते ही मुझे बांझ कह - कहकर मेरा जीना दुश्वार कर देंगी । " " तू ऐसा क्यों सोचती है , भगवान ने चाहा तो तेरी भी गोद जल्दी ही भर

जाएगी फिर भी मैं ऐसा करती हूं कि अपने पैर भारी होने का भेद में किसी को नहीं बताऊंगी – अगर मेरे बच्चा होने तक भी तेरा पांव भारी नहीं हुआ ,

तो हम दोनों बहने उसी बच्चे को मां बनकर पालेगी ऐसा ही हुआ भी मेरे बच्चा हो गया , मगर इसकी गोद नहीं भरी तो हम दोनों ही बच्चे का पालन - पोषण करने लगीं ।

" " यह तो सब हुआ मगर झगड़े का कारण क्या रहा ? "

" झगड़ा तब शुरू हुआ मुखिया जी , जब इसने बच्चे से कहा कि वह मुझे मोसी कहकर पुकारे अब आप ही बताएं मुखिया जी क्या

यह सुनकर मेरे सीने पर सांप नहीं लौटेंगे भला कौन मां ऐसी होगी जो अपने ही बच्चे के मुंह से मां की बजाय मौसी सुनना चाहेगी बस ,

यही सुनकर मेरे मन में खटका पैदा हो गया कि यह मुझसे मेरे बेटे को छीन लेना चाहती है । "

" यह झूठ बोल रही है मुखिया जी यह बच्चा मेरा है । "

भोली ने चीखकर कहा- मैं हूं इस बच्चे की असली मां - यही बच्चे के मुंह से मुझे मौसी कहलाकर मेरे बच्चे को मुझसे छीनना चाहती है

मैंने ही इससे कहा था कि जब तक तेरे कोई बच्चा नहीं होता , तू मेरे बेटे को ही अपना बेटा समझ में क्या जानती थी

कि यह मेरे उपकार का यह बदला देगी ?

" कहकर भोली आंचल से मुंह ढांपकर फूट - फूटकर रोने लगी- " यह झूठी है मुखिया जी यह झूठी है— मेरे लाल को मुझसे छीन लेना चाहती है । "

मुखिया जी को दोनों ही औरतों का विलाप सच्चा नजर आ रहा था ।

अतः वह समझ नहीं पा रहे थे कि फैसला किसके हक में करें ।

न ही वह यह सिद्ध कर पा रहे थे कि बच्चे की असली मां कौन है ।

" देखो . ...। "

अन्त में अपने बाकी पंचों से विचार - विमर्श करने के बाद मुखिया जी बोले- " यह मामला बड़ा पेचीदा है जो

इस प्रकार नहीं सुलझ सकता- यह तो सच है कि तुम दोनों में से एक औरत झूठी है जो

बच्चे पर अपना नाजायज हक जमा रही है — यह एक घोर पाप ही नहीं , जघन्य अपराध भी है

जिसके बदले कठोर दण्ड दिया जा सकता है , इसलिए हमने यह फैसला किया कि इस मसले को हम राजदरबार में ले जाएंगे – मगर ... मगर इससे पहले हम तुम्हें एक मौका और देते हैं ।

जो भी औरत बच्चे पर अपना झूटा हक जमा रही है , वह पीछे हट जाए और अपनी गलती स्वीकार कर ले हम वायदा करते हैं कि

उसे किसी प्रकार का दण्ड नहीं दिया जाएगा मगर यदि मामला राजदरबार तक गया तो महाराज का फैसला ही

आखिरी फैसला होगा और झूठी औरत दण्ड की भागीदार होगी — बोलो , तुममें से कौन बच्चे पर झूठा हक जमा रही है भोली तुम ... ?

" " नहीं मुखिया जी नहीं । "

तड़पकर भोली बोली " मैं ईश्वर की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि मैं बच्चे की असली मां हूं मैंने तो इसके साथ भलाई की थी , मुझे क्या

पता था कि भलाई का बदला यह कलमुंही बुराई से देगी । ”

" तुम क्या कहती हो चंचला ? " मुखिया ने पूछा । "

मुझे तो जो कहना था , कह चुकी हूँ मुखिया जी यह बच्चा मेरा है - मैं हूं इसकी असली मां इसके घड़ियाली आंसू बहाने से हकीकत थोड़े ही बदल जाएगी ।

" " ठीक है , पंचायत का फैसला है कि यह मामला कल राजदरबार में पेश किया जाएगा । "

मुखिया जी ने कहा- " और जब तक यह निर्णय नहीं हो जाता तब तक इस

बच्चे की देखभाल पंचायत करेगी । " " ठीक है — मुझे गंजूर है । " चंचला ने कहा । '

नहीं - नहीं मुखिया जी — यह अन्याय है— रात भर मेरा बच्चा मेरे बिना कैसे रहेगा ? "

" तुम किसी प्रकार की चिन्ता मत करो भोली ।

" मुखिया जी ने कहा- " हमारी पत्नी स्वयं इस बच्चे की देखभाल करेगी और इसे किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दिया

जाएगा । "

" मुखिया जी ! इस प्रकार रो रोकर यह पंचायत की सहानुभूति हासिल करना चाहती है यह ढोंगी है । "

चंचला ने कहा । " इस प्रकार एक - दूसरे पर छींटाकशी करने से बेहतर है कि तुम लोग जाओ - अब इसका फैसला कल राजदरबार में ही होगा ।

" इस प्रकार पंचायत समाप्त हो गई ।

दोनों औरतें एक दूसरे को कोसती हुई अपने - अपने घर को चली गई ।

दूसरे दिन मुखिया ने मामला राजदरबार में प्रस्तुत कर दिया ।

अब तक आस - पास के गांवों व राज्य के अन्य हिस्सों में भी इस अनोखे मुकदमे की चर्चा फैल चुकी थी ।

अतः राजदरबार खचाखच भरा हुआ था । सभी जानना चाहते थे । महाराज इस अनोखे

मुकदमे का क्या फैसला सुनाते हैं ।

महाराज भी यह जानकर दंग रह गए थे कि बच्चा एक है और उसकी दावेदार मां दो हैं और इस बात का कोई गवाह भी नहीं है कि असल में बच्चा किसका है ।

पूरी बात सुनकर महाराज गहरी सोच में डूब गए ।

उनकी समझ में नहीं आ रहा या कि निर्णय किसके पक्ष में करें ।

" यह मामला बहुत गम्भीर है मंत्री जी । "

" हां महाराज यह कोई साधारण मसला नहीं है ।

मुसीबत यह है कि बच्चा बोल नहीं सकता है और इन दोनों में से कोई एक इस बात का अनुचित लाभ उठाना चाहती है ।

महाराज ! यदि मेरी मानें तो इसका निर्णय स्वामी औषधानन्द जी से कराएं अपार दूरदर्शी और ईश्वर के सच्चे भक्त है — झूठ तो उनके सामने टिक ही नहीं पाएगा । "

" हां मंत्री जी — यह आपने ठीक कहा— जिस घटना का कोई गवाह न हो ,

उसका गवाह ईश्वर होता है और वह किसी - न - किसी रूप में गवाही देने आ ही पहुंचता है वह कब और कैसे आता है ,

यह एक ज्ञानी ही देख सकता है और औषधानन्द जी सच्चे ज्ञानी हैं ।

अतः हमारा आदेश है कि कल यह मसला स्वामी जी के सामने प्रस्तुत

जाए । "

और इस प्रकार-

किया

दूसरे दिन महाराज , मंत्रीगण आदि उस बच्चे और दोनों औरतों को लेकर स्वामी औषधानन्द जी के आश्रम की ओर चल दिए ।

पीछे - पीछे अपार जन समूह था जो इस विचित्र फैसले को सुनना चाहता था ।

कुछ ही देर बाद स्वामी औषधानन्द जी के सम्मुख उस मसले को रखकर महाराज ने कहा- " स्वामी जी !

अब तो न्याय आपके ही हाथ में है ।

आप ही इस विवाद का ऐसा फैसला करें कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए ।

" स्वामी औषधानन्द जी ने बड़े प्यार से उस बच्चे को अपनी गोद में बैठाया और गौर से उसका चेहरा देखा ।

नन्हा बालक उनकी गोद में किलकारियां मार रहा था ।

बच्चे का चेहरा देखने के बाद स्वामी जी ने उन दोनों औरतों की ओर देखा ।

दोनों ही लुटी लुटी और गमगीन - सी उनके सामने खड़ी थीं ।

" हूं —– राजन ! " " जी स्वामी जी । "

" हम समझ गए कि यह बच्चा किसका है । " " किसका है महाराज ? "

" उसका नाम हम अपने मुंह से नहीं बताएंगे — इसका निर्णय अभी यह दोनों स्वयं कर देंगी - बोलो देवियो !

सच सच बताओ कि यह बच्चा किसका है ? " " यह बच्चा मेरा है स्वामी जी । "

भोली सिसकते हुए बोली " मैं ही इस अभागे बच्चे की मां हूं । "

" चुप रह दुष्ट ! खबरदार जो मेरे बच्चे को अभागा कहा कर्मजली !

अभागी तो तू है जो आज तक एक बच्चा भी न जन सकी और मेरे लाल पर नजरें गड़ा बैठी है ।

" चीखकर चंचला ने कहा ।

उन्हें इस प्रकार झगड़ते देख स्वामी जी को समझते देर नहीं लगी कि यदि उन्हें शान्त न किया गया तो अवश्य ही यह हाथापायी पर उतर आएंगी ।

" शान्त देवी - शान्त । " स्वामी जी ने दोनों को शान्त किया , फिर किसी सोच में डूब गए ।

सभी लोग शान्त बैठे उनकी ओर देख रहे थे ।

महाराज की नजरें भी स्वामी जी पर टिकी हुई थीं ।

एकाएक स्वामी जी ने पूछा— " देवियो ! क्या तुम्हें हमारा निर्णय

' स्वीकार होगा ? "

" हां महाराज ! " चंचला जल्दी से बोली - " आपका निर्णय अस्वीकार करने का तो सवाल ही नहीं उठता ।

आप तो अन्तर्यामी हैं ।

जो भी निर्णय करेंगे , सोच - समझकर करेंगे और सच्चा निर्णय करेंगे । "

स्वामी जी ने भोली की ओर देखा ।

" मुझे आपका निर्णय स्वीकार होगा महाराज मुझे विश्वास है कि जीत सत्य की ही होगी । "

" ठीक है । "

स्वामी जी अपने स्थान से उठे और अपने आसन से कुछ दूर धरती पर एक दायरा खींच दिया ,

फिर बोले- " मैं बच्चे को इस घेरे में रख देता हूँ - तीन तक गिनती गिनूंगा — तब जो भी देवी इस बच्चे को पहले उठा लेगी ,

बच्चा उसी का होगा । " " हमें मंजूर है महाराज ।

" स्वामी जी ने वैसा ही किया ।

बच्चे को उस घेरे में लिटा दिया गया ।

" एक " स्वामी जी ने गिनती शुरू की ।

" दो । "

दोनों औरतों ने बच्चे पर झपटने की तैयारी कर ली ।

“ तीन । ”

जैसे ही स्वामी के मुंह से तीन निकला , वैसे ही दोनों औरतें बच्चे पर टूट पड़ीं ।

भोली के हाथ में बच्चे के पैर आ गए और चंचला के हाथों में हाथ ।

" छोड़ - छोड़ दुष्टा- यह बच्चा मेरा है ।

" भोली कराह उठी । " बच्चा मेरा है बांझ औरत — देखती हूं तू इसे कैसे ले जाती है । "

जातक कथाएं- दोनों ही बच्चे को अपनी - अपनी ओर खींचने लगीं ।

इस प्रकार खींचे जाने से बच्चा जोर - जोर से रोने लगा ।

देखते ही देखते पीड़ा के कारण उसका रोना कंदन में बदल गया ।

वह चीखे जा रहा था और दोनों औरतें उसे अपनी ओर खींचकर अपने कब्जे में लेने की कोशिश कर रही थीं ।

देखने वालों को बच्चे की दयनीय स्थिति पर तरस आ रहा था और मन ही मन वह सोच रहे थे कि कैसी निष्ठुर औरतें हैं जिन्हें बच्चे पर जरा भी दया नहीं आ रही ।

" नहीं । " एकाएक भोली तड़प उठी ।

उससे बच्चे का बिलखना न देखा गया और बच्चे को छोड़कर वह धरती पर बैठकर सिसकने लगी और सिसकते हुए ही बोली - " महाराज !

मैं बच्चे की ऐसी दुर्गति होते नहीं देख सकती- -यह कलमुंही कहती है कि बच्चा इसका है ,

तो इसे दे दो — मगर मेरे लाल की दुर्गति न कराओ ।

" चंचला ने झपटकर बच्चे को सीने से लगा लिया- " कहती क्या हो कुल्टा - यह बच्चा तो है ही मेरा अब तो आपने देख लिया न स्वामी जी कि बच्चा किसका है ।

इस कलमुंही का होता तो क्या यह इतनी आसानी से बच्चे को छोड़ देती — जीत तो हमेशा सत्य की ही होती है ।

" स्वामी औषधानन्द जी अत्यधिक गम्भीर मुद्रा में बैठे किसी विचार में खोये हुए थे ।

सभी की नजरें उनके चेहरे पर स्थिर थीं ।

सभी जानना चाहते थे कि स्वामी जी का फैसला क्या होगा और कौन बच्चे की असली मां है चंचला बच्चे को

गोद से चिपटाए पागलों की भांति चूम रही थी और बच्चा अभी भी रोए जा रहा था ।

" चंचला ! " एकाएक स्वामी जी की गम्भीर आवाज गूंजी " बच्चे को भोली के सुपुर्द कर दो तुम इस बच्चे की असली मां नहीं हो ।

" चंचला चीखकर बोली " यह आप क्या कह रहे हैं स्वामी जी आपने ही तो कहा था कि जो भी बच्चे को उठा लेगी , वही उसकी मां होगी । "

" हां कहा था । "

" तो फिर आप अपने वचन से क्यों मुकर रहे हैं । "

" हम न्याय कर रहे हैं चंचला सत्य का न्याय और सत्य यही है कि यह बच्चा तुम्हारा नहीं , भोली का है । "

" नहीं नहीं स्वामी जी यह अन्याय है । "

" खामोश रहो दुष्ट औरत जिस औरत के हृदय में ममता नहीं ,

वह भला मा कैसे हो सकती है - यदि तुम बच्चे की असली मां होती तो बच्चे की इस

प्रकार दुर्गति न होने देती — मगर क्योंकि यह बच्चा तुम्हारा नहीं है और इसे तुम्हें किसी भी कीमत पर हासिल करना था ,

इसलिए तुम्हें बच्चे के हित - अहित की कोई बात भला कैसे सूझ सकती थी तुम्हारे मन में तो स्वार्थ भरा है

और स्वार्थी जीव किसी के हित - अहित की बात सोच ही नहीं सकता — इस बच्चे की असली मां भोली है

जिससे न बच्चे का क्रंदन - विलाप सहन हुआ और न बच्चे की दुर्गति देखी गई ।

अतः बच्चे के हित को देखते हुए उसने अपना दावा वापस ले लिया ।

" कहकर स्वामी जी महाराज से मुखातिब हुए और बोले — ' ' हम अपना निर्णय दे चुके हैं राजन — आगे जो करना है , आप करें ।

" " आपका निर्णय ही अंतिम निर्णय है महाराज — महामंत्री जी । "

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" जी महाराज । "

" हमारा आदेश है कि इस दुष्ट औरत से बच्चे को लेकर भोली सुपुर्द कर दिया जाए और

अमानत में खयानत करने के अपराध में इसे कारावारा में डाल दिया जाए ।

" " नहीं नहीं महाराज " दूध का दूध और पानी का पानी होते देख भोली ने आगे बढ़कर बच्चे को चचला से ले लिया

और बोली " यह मेरा सरखी है , इसे ऐसा कठोर दण्ड न दें - मैं आपसे विनती करती हूँ किसी स्वार्थ के कारण

इसने ऐसा अवश्य किया है , वित्तु यह दिल की बुरी नहीं है । " " देखो तूने पापिन औरत !

कितना विशाल है भोली का हृदय - जिसके साथ तूने छल किया , वहीं तेरे लिए अभयदान गांग रही है । "

" मुझे क्षमा कर दें महाराज । वैद्यजी ने मुझे बताया था कि मैं कभी मां नहीं बन सकती , यही जानकर मेरे मन में पाप आ गया था । "

कहकर चला फूट - फूटकर रोने लगी । " भोली निष्कपट और निष्पाप है , अतः इसके कहने पर हम तुझे क्षमा करते हैं ,

किन्तु याद रहे , भविष्य में कभी किसी के साथ धोखा करने की चेष्टा न करना , अन्यथा कठोर दण्ड दिया जाएगा । "

" बहन भोली । " चंचला भोली के कदमों में गिर पड़ी और सिसक - सिसककर रोते हुए बोली - " मुझे माफ कर दे बहन- मैंने तेरा दिल दुखाया है । "

" दिल छोटा न कर बहन चंचला जो कुछ हुआ उसे भूल जा— सुबह का भूला यदि शाम को घर आ जाए तो मूला नहीं कहलाता- तेरी आंखों से

बहने वाले प्रायश्चित के आंसुओं ने तुझे अपराधमुक्त कर दिया - ले संभाल इस बच्चे को इस

पर आज भी तेरा उतना ही अधिकार है , जितना पहले था मैं भरी सभा में ऐलान करती हूं कि मैं

इसकी जन्म की मां हूं और तू इसकी धर्म की मां है - आज से इसका लालन - पालन तू ही करेगी तो इसे हंसता - खेलता देखकर ही खुश रहूंगी । "

" भोली मेरी बहन । "

भोली की महानता देखकर उपस्थित जनसमूह की आंखों में खुशी के आंसू उमड़ आए महाराज और स्वामी जी सहित सभी धन्य - धन्य कहने लगे ।