एक जंगल में एक गीदड़ और गीदड़ी बड़े ही प्यार से रहते थे ।
गीदड़ अपनी गीदड़ी को बहुत चाहता था ।
वह जो भी फरमाइश करती , गीदड़ उसे यथासम्भव पूरा करता था ।
एक बार गीदड़ी ने गीदड़ से कहा- " प्रिय ! आज तो मेरा मछली खाने का मन कर रहा है । "
" यदि मन कर रहा है तो मैं आज ही तुम्हें मछली खिलाऊंगा प्रिये ! यह कौन - सी बड़ी बात है । "
गीदड़ गीदड़ी से कहकर चल दिया ।
नदी की ओर जाते समय वह सोच रहा था कि मैंने पत्नी से कह तो दिया कि मछली खिलाऊंगा — मगर मुझे तो मछली का शिकार भी करना नहीं आता ।
अपनी पत्नी को आज मछली खाने की इच्छा कैसे पूर्ण करूं ?
सोचते - सोचते गीदड़ नदी किनारे जा पहुंचा और एक ओर बैठकर तालाब में मचलती मछलियों को ललचाई नजरों से देखने लगा ।
एक बार तो उसका मन चाहा कि तालाब में कूद पड़े और पलक झपकते ही मछलियों का शिकार कर ले ।
लेकिन दूर - दूर , तक फैले नदी के पानी और उसके प्रवाह को देखकर उसकी हवा खराब हो रही थी ।
पानी में उतरने से उसे इतना डर लगा कि वह नदी किनारे से काफी दूर एक वृक्ष के नीचे आकर बैठ गया और कोई युक्ति सोचने लगा ।
तभी उसकी नजर एक उदबिलाव पर पड़ी जो अपने एक साथी के साथ एक बड़ी मछली का शिकार करके उसे किनारे पर ला रहे थे ।
एक ने दूसरे से कहा- " यह तो बहुत भारी मछली है — हमारा तो कई दिन तक गुजारा हो जाएगा । "
हो . " हां भाई । ऐसी भारी मछली तो बड़े दिन के बाद हाथ लगी है ।
" उस मछली को देखकर गीदड़ के मुंह में पानी आ गया ।
वह सोचने लगा कि क्यों न मैं इनसे यह मछली हथिया लूं ?
बात तो बन सकती है , अगर थोड़ा चतुराई से काम लूं ।
उदबिलाव मछली को घसीटकर किनारे पर ले आए ।
तभी एक बोला- " सुनो पत्र यह मछली तो एक है और हम दो अब इसका बंटवारा कैसे किया जाए ? "
" क्यों न हम खुद ही बंटवाला कर लें ।
" एक बोला ।... " देख भाई ! " दूसरा बोला " यदि हम खुद ही बंटवारा करेंगे तो दोनों के दिल में यह घुटक रहेगी कि दूसरे के पास ज्यादा चली गई ।
इसीलिए मेरी राय तो यह है कि हमें किसी तीसरे से इसका बंटवारा करवा लेना चाहिए ।
" गीदड़ ने जब यह बात सुनी तो मन - ही - मन बहुत खुश हुआ और किसी बुजुर्ग की भांति आगे बढ़कर बोला— " अरे भाई लोगो ! क्या सोच रहे हो ? "
" सोच क्या रहे हैं भाई । " एक उदबिलाद बोला- “
बात दरअसल यह है कि हमने इस मछली का शिकार किया है — यह मछली तो एक है और हम दो हैं हम सोच रहे हैं
कि इसका बंटवारा कैसे करें । " " बंटवारा तो कोई तीसरा ही कर सकता है भइया " दूसरा उदबिलाव बोला ।
" ठीक कहते हो भइया — देखो , अगर तुम ठीक समझो तो मैं तुम्हारा बंटवारा कर हूं — अपना तो काम ही दूसरों के फैसले करवाना है कहो तो तुम्हारा भी झगड़ा खत्म
करवा दूं । "
“ ठीक है भइया - अगर इसे एतराज न हो तो मुझे तो कोई एतराज नहीं है । "
" मुझे भी कोई एतराज नहीं है भइया । " " वाहवाह , मित्रता हो तो ऐसी किसी ने ठीक ही कहा है कि ' एक ने कही ,
दूसरे ने मानी , कहें कबीरा दोनों ज्ञानी ' राजी राजी तो बड़ी - बड़ी समस्याएं हल हो जाती हैं— सबको मिल- बांटकर खाना चाहिए— एक - दूसरे पर विश्वास करना चाहिए- प्रेम के सिवा इस संसार में रखा ही क्या है — तुम लोग बैठो , मैं अभी मछली काटने का कोई औजार ढूंढकर लाता हूं , ताकि हिसाब से बंटवारा किया जा सके । " " हां - हां भइया , जाओ ।
हम यहीं बैठकर तुम्हारा इन्तजार करते हैं ।
" गीदड़ ने नदी की ओर आते वक्त एक किसान को देखा था जो अपने खेत के किनारे चारपाई पर लेटा उसकी रखवाली कर रहा था ।
उसके पास ही चारपाई पर एक लाठी और दरांती रखी थी ।
भागता भागता गीदड़ वहीं पहुंचा ।
किसान सो रहा था ।
गीदड़ ने चुपके से उसकी दरांती उठाई और वापस चल दिया ।
“ वाह ! मिल गया औजार अब बन जाएगा अपना भी काम ।
" गीदड़ दरांती लेकर उन उदबिलावों के पास आ गया ।
" आओ भाई ! अब करता हूं तुम्हारा बंटवारा । " गीदड़ ने उसके तीन टुकड़े किए ।
पहले सिर अलग किया , फिर पूंछ अलग की ।