गीदड़ का अभिमान

एक भूखा गीदड़ जंगल में भटकता फिर रहा था ।

भूख बड़े - बड़ों को पागल बना देती है यही हाल उस समय गीदड़ का था ।

वह भूख का मारा जंगल में चला जा रहा था । अचानक ही उसके सामने शेर आ गया ।

गीदड़ की बुद्धि चालाकी और हेराफेरी में सब जानवरों से अधिक तेज होती है ।

वह सदा मौके का लाभ उठाता है ।

ऐसा ही उस गीदड़ ने किया ।

उसने शेर को देखते ही बड़ी नम्रता से कहा- " जंगल के राजा को गरीब गीदड़ की ओर से कोटि - कोटि प्रणाम । "

" प्रणाम बन्धु– कहो , कैसे हो ? "

. “ महाराज ... आपके राज्य में वैसे तो प्रजा सदा सुखी ही रहती है ... हां , कभी - कभी मुझ जैसा छोटा जीव अवश्य दुःखी हो जाता है । "

" तुम्हें क्या दुःख है गीदड़ ? "

" महाराज ! एक तो मैं जात से गीदड़ , दूसरा अकेला , तीसरा भूखा ... अब आप ही बताइए कि सुख कहां से मिले ?

मेरे भाग्य में तो दुख ही दुख है ।

सुख का तो जैसे कोई स्वप्न भी मेरे भाग्य में नहीं है । "

" बहुत दुखी लगते हो । "

" हां स्वामी - दुखों का बोझ अब सहा नहीं जाता - सोचता हूं कि इस दुखी जीवन से तो मरना ही अच्छा है ।

" गीदड़ ने अपनी आंखों में आंसू भरते हुए कहा ।

" बस - बस मित्र , रोओ नहीं ... यदि तुम इतने ही दुखी हो तो चलो , मेरे साथ चलकर रहो ... खाने - पीने की चिन्ता करना अब तुम छोड़ दो ।

” गीदड़ मन ही मन में खुश होकर शेर के साथ - साथ चलने लगा ।

दोनों चलते - चलते गुफा में पहुंच गए ।

उस गुफा में मांस पड़ा देखकर गीदड़ की भूख और भी तेज हो गई ।

" मित्र तुम्हें भूख तो लगी है न ? "

" हां महाराज - बहुत तेज भूख लगी है ।

" फिर पेटभर कर खा लो देखो , सामने हाथी का मांस पड़ा है इससे तो तुम्हारा

पेट कई बार भर जाएगा । " " धन्यवाद महाराज- धन्यवाद । "

यह कहता हुआ गीदड़ उस मांस पर टूट पड़ा और बड़े आनन्द से खाने लगा ।

भूख तो कई दिनों से तड़पा रही थी ।

किन्तु आज तो जैसे भगवान को ही उस पर दया आ गई थी जो शेर से उसका सामना हो गया ।

बाकी का काम उसने अपनी चतुराई से पूरा कर लिया था ।

अब भला भूख की क्या मजाल जो उसे सताए ।

पेट भरते ही गोदड को नींद आ गई वह वहीं पर ढेर हो खर्राटे भरने लगा ।

दूसरे दिन सुबह जब शेर शिकार को जाने लगा तो वह भी उसके पीछे - पीछे चल दिया ।

उसे पता था कि शेर अपने लिए तो शिकार करेगा ही , बस उसका बचा खुचा खाकर वह भी अपनी भूख शान्त कर लेगा ।

फिर शेर के साथ साथ चलने में जंगल के जानवरों पर उसका जो रोब पडेगा , वह अलग ।

अब तो उसकी पांचों उंगलियां घी में थीं ।

" मित्र गीदड़ ... तुम इसी गुफा में आराम करो , क्योंकि तुम हमारे मेहमान हो— हम अभी शिकार गारकर लाते हैं ।

" " महाराज आप टहरे जंगल के राजा ... आप इस प्रकार से अकेले जाते अच्छे नहीं लगते .. ... राजा के साथ मंत्री का होना जरूरी है । " " बात तुम्हारी तो ठीक है .. हम राजा होकर इस जंगल में अकेले ही घूमते फिरें- इसमें हजारी इज्जत नहीं ... राजा के साथ एक मन्त्री का होना जरूरी है । ठीक हैं , हम आज से तुम्हें अपना मंत्री नियुक्त करते हैं । " शेर ने उसी समय गीदड़ को अपना मन्त्री बना लिया । मन्त्री बनते ही कुछ ही दिन में गीदड़ के पर निकल आए - अब तो वह जंगल में बड़े आनन्द से घूमने लगा । छोटे - मोटे सारे जानवरों पर उसने ऐसा रोब डाला कि वे उसकी शक्ल देखते ही सहम जाते । एक दिन शेर ने उसे बुलाकर कहा -- " देखो मन्त्री जी - तुम कल से सामने वाली पहाड़ी पर पहरा देना और मुझे यह बताते रहना कि उधर से कोई शत्रु तो नहीं आ

रहा । "

" मैं आपको कैसे बताऊंगा , महाराज ! आप कोई संकेत बता दें । ” " बस शत्रु को देखते ही जोर से आवाज लगाना । तुम्हारी आवाज सुनते ही मैं आकर उसका वध कर दूंगा । उस शिकार से पहले मैं अपना पेट भरा करूंगा बाकी जो बचेगा , वह तुम्हारे काम आएगा । " " जैसी आपकी आज्ञा मैं तुरन्त ही इस कार्य के लिए रवाना होता हूं । "

गीदड़ उस पहाड़ी पर चला गया और चारों ओर बहुत चौकसी से नजरें दौड़ाने लगा । थोड़ी देर के पश्चात गीदड़ ने एक हाथी को उस ओर आते देखा । गीदड़ ने तुरन्त इसकी सूचना शेर को दी । कहा “ महाराज ! एक खूनी हाथी आपके क्षेत्र में घुस आया है । उसके इरादे नेक नहीं लगते । " यह सुनकर शेर को बहुत क्रोध आया । वह पूरी शक्ति से दहाड़ा । उसकी आंखें अंगारों की भांति दहकने लगीं । उसकी भयंकर गरज को सुनते ही जंगल के छोटे - मोटे जानवर जान बचाने के लिए भाग खड़े हुए ।

शेर तेजी से उस पहाड़ी की ओर भाग रहा था । कुछ ही देर में वह पहाड़ी पर गीदड़ के पास जा पहुंचा ।

शेर ने हाथी को देखा तो उसे और भी अधिक जोश आ गया और बिना कुछ सोचे - समझे वह हाथी पर टूट पड़ा ।

हाथी ने भी ऐसी चिंघाड़ मारी कि एक बार तो सारा जंगल ही हिलकर रह गया । फिर दोनों में भयंकर युद्ध होने लगा ।

दोनों के लड़ने पर ऐसा शोर उत्पन्न हो रहा था-- -जैसे दो पहाड़ आपस में टकरा रहे हों ।

किन्तु हाथी कब तक शेर से लड़ सकता था । अंत में शेर ने उसे मार गिराया और बड़े मजे से उसका मांस खाने लगा । कई दिनों के पश्चात उसे हाथी का मांस खाने के लिए मिला था । शेर फाड़ फाड़कर हाथी का लज़ीज़ मांस खा रहा था और गीदड़ ललचाई दृष्टि से उसे देख रहा था । वह सोच रहा था कि कब शेर हटे और कब वह हाथी के नर्म मांस से अपनी भूख शान्त करे मन ही मन वह शेर को कोसता भी जा रहा था कि कम्बख्त न जाने कितना खाएगा । कुछ देर बाद उसकी तपस्या रंग लाई और जीभ से अपनी मूंछे साफ करते हुए शेर बोला- " अब हम चलते हैं मंत्री जी , अब तुम भी अपनी भूख मिटा लो । " " आपने तो बहुत थोड़ा खाया है महाराज , थोड़ा और खाइए । " " नहीं नहीं वस ठीक है । " कहकर शेर चला गया । उसके पीठ फेरते ही गीदड़ हाथी के शव पर टूट पड़ा । वह बड़े - बड़े लोथड़े नोचता और सटक जाता । थोड़ी देर में ही उसका पेट भर गया । तब आसमान की ओर चेहरा उठाकर वह बोला- “ तेरा लाख लाख शुक्र है मालिक जो तूने शेर से मेरी मित्रता करा दी अवश्य ही यह मेरे किसी पुण्य कर्म का प्रताप है । "

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थोड़े दिनों में ही गीदड़ का रंग - ढंग बदल गया । जब खुला खाने को मिलता है । तो इन्सान अपने आपको सुखी महसूस करता है और बेफिक्री तो वैसे ही इंसान को फुला देती है । यही हाल उस गीदड़ का था । उसे शेर के पास रहते हुए सारे ही सुख मिल गए थे इन्हीं सुखों के कारण वह मोटा होता जा रहा था । देखते - देखते वह इतना मोटा हो गया कि जंगली जानवर उसकी शक्ल देखते ही डरने लगे ।

अपने आपको अब वह इतना शक्तिशाली समझने लगा था कि उसे शेर के भी सहारे की जरूरत महसूस नहीं हो रही थी । ' मैं अब शेर की जूठन क्यों खाऊ ? ' एक दिन उसके मन में यह विचार आया ' अब तो मुझमें इतनी शक्ति आ गई है कि मैं हाथी को भी मार सकता हूँ । ” उसी समय गीदड़ शेर के पास गया और नम्रता पूर्वक नमस्कार करके बोला .. " हे जंगल के राजा ! मुझे आपकी सेवा करते - करते बहुत दिन हो गए— अब तो मैं आज्ञा लेने आया हूं मैं वास्तव में अपने घर जाना चाहता हूं । " " शौक से जाओ मित्र , मगर एक बात का ध्यान रखना कि जो भी खाना तुम्हें मिले , उसमें से थोड़ा बहुत कल के लिए अवश्य ही बचाकर रखना मेरे साथ रहकर तो तुम्हें खाने की फिल्ल थी नहीं , किन्तु ...। " " महाराज ! आपके साथ रहकर मुझे अब शिकार करना आ ही गया है अब में स्वयं ही शिकार करके अपना पेट भर लिया करूंगा । " शेर ने गीदड़ की ओर बड़े ध्यान से देखा आज यह गीदड़ बहुत मोटा ताजा दिखाई । दे रहा था । जिस दिन यह गीदड़ उसके पास आया तब बहुत मरियल सा था । मगर मुफ्त का माल खाकर इस पर इतना मोटापा छा गया है कि देखने में यह किसी हाथी के बच्चे कम नहीं लगता - शायद इसीलिए यह अपने आपको बहादुर समझ रहा है । यह समझता है कि मोटे में ही ताकत होती है इसकी यही भूल इसे ले डूबेगी । यही सोचकर उसे समझाते हुए शेर बोला- " देखो गीदड़ - मैं जानता हूं कि थोड़ा - सा सुख हर जीव का दिमाग खराब कर देता है तुमने मेरे पास रहकर काफी सुख पाया है ... अब तुम अपने आपको मेरी भांति ही बहादुर समझने लगे हो मगर मेरी एक बात याद रखना कि शिकार करना हर एक के बस की बात नहीं मैं तो यही सलाह दूंगा कि तुम मेरे पास ही पड़े रहो और सारी उम्र खाते रहो । इतना तो मैं भी समझ रहा हूं कि न तो तुम्हारा कोई घर है और न ही तुम्हें कहीं जाना है । तुममें अपनी शक्ति का अभिमान जाग उठा है और यह अच्छी बात नहीं है । एक बात मत भूलो कि घमंड का सिर नीचा होता है । " " हे जंगल के राजा ! आपने जो कहा है , वह सत्य है , मैं अपनी शक्ति के बल पर जीने का अवसर चाहता हूं । बस एक बार मुझे अपनी शक्ति से जीने का अवसर दे दो । आप मेरे राजा भी हैं और गुरु भी , इसलिए मुझे आशीर्वाद दो कि मैं अपने काम में सफल हो जाऊं । " “ यदि तुम अपने आपको इस योग्य समझते हो गीदड़ महाराज , तो फिर आज से मेरे स्थान पर राजा बनकर बैठो और मैं तुम्हारा मंत्री बनकर शिकार देखने जाया करूंगा । अर्थात् आज से तुम्हारा काम मैं करूंगा और मेरा राजपाट तुम संभालो । बस , जैसे ही

मुझे शिकार नजर आएगा मैं तुम्हें आकर बोल दूंगा । " अंधा क्या चाहे , दो आंखें । यही तो वह गीदड़ चाहता था । शेर की बात सुनते ही उसकी आंखें चमक उठीं । अतः तनिक हिचकिचाते हुए वह बोला -- " ठीक है महाराज , यदि आप कहते हैं तो ऐसा ही सही- इस प्रकार मेरा शक्ति परीक्षण भी हो जाएगा । "

" ठीक है । अब मैं चला शिकार की तलाश में पहाड़ी की ओर । " कहकर शेर पहाड़ी की तरफ चल दिया और गीदड़ ठाट से जमकर उसके सिंहासन पर बैठ गया । इस समय उसे इतनी खुशी हो रही थी कि न चाहते हुए भी उसके हलक से कहकहे उबल रहे थे । राजा बनने की खुशी ने उसे अंधा कर दिया था । जीवन भर तो वह दब्बू बना रहा था । आज एक शेर उसका मंत्री है , सेवक है और वह मालिक है । इस अहसास ने उसे पागल - सा कर दिया था । दीवानावार वह कभी शेर के सिंहासन को देखता , कभी गर्व से चेहरा उठाकर दाएं - बाएं का अवलोकन करता । छोटे - मोटे सारे जानवर यह तो जानते ही थे कि यह गीदड़ शेर का साथी है । इसलिए सब जानवर उसे नमस्कार करते थे । मगर गीदड़ ने कभी यह नहीं सोचा था यह जानवर केवल उसे इसलिए प्रणाम करते हैं कि वह शेर का साथी है । वह तो यही समझता था कि यह लोग मेरी शक्ति से डरते हैं । अहंकार हर जीव का शत्रु होता है । अभिमान उसे ले डूबता है । उधर , शेर पहाड़ी पर बैठा दूर से आने जाने वाले जानवरों को देख रहा था । उसे भी जीवन में पहली बार शांति मिली थी- आज उसे कोई शिकार नहीं करना था । आज से तो शिकार करने का काम गीदड़ ही करेगा । तभी शेर ने देखा कि एक हाथी उस जंगल की ओर बढ़ा आ रहा है । स्वभाववश शेर उस पर आक्रमण करने के लिए दौड़ा । मगर अचानक ही उसे याद आ गया कि आज से तो मुझे शिकार नहीं करना । यह काम तो गीदड़ ही करेगा । शेर दौड़ा - दौड़ा गुफा में गीदड़ के पास आकर बोला- " महाराज उठो , शिकार आया है ... हाथी ... " " क्या कहा , हमारा शिकार आया है । अरे हम राजा हैं । हमारा काम ही शिकार खेलना है । चलो सेवक हम चलते हैं । " यह कहते हुए गीदड़ शेर की भांति दहाड़ने लगा । उसकी फटी - सी आवाज सुनकर शेर मन ही मन में हंस दिया । " क्यों मंत्री जी ! हमारी आवाज में पूरा रोष है या नहीं ? " " हां महाराज , आपकी इस आवाज को सुनकर जंगल के छोटे - मोटे जानवर तो कब के भाग खड़े हुए होंगे । " " ऐसे ही होते हैं राजा हमारा शरीर बिल्कुल हाथी जैसा नही लगता ? " " हां ... हां ... लगता है । मगर अब जल्दी बलिए महाराज , वह हाथी ...। " " चलो मंत्री जी तुम हमारे पीछे - पीछे आओ हम तुमसे पहले वहां पर पहुंचकर उस हाथी का कल्याण करते हैं । " गीदड़ को तो अपने आप पर पूरा विश्वास था कि हाथी को पल भर में मार गिराएगा । आखिर यह शेर भी तो उसे ऐसे ही मारता था ।

हाथी पहाड़ी पर खड़ा चिंघाड़ रहा था । उधर गीदड़ भी उसे देखकर दहाड़ने लगा । उसने हाथी के सामने पहुंचकर एक लम्बी छलांग लगाई और हाथी पर आक्रमण कर दिया । ऐसे ही तो शेर किया करता था । वह बिल्कुल शेर का अनुसरण कर रहा था । हाथी ने एक गीदड़ को अपने ऊपर आक्रमण करते देखा तो उसके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा । एक गीदड़ की यह मजाल कि हाथी पर आक्रमण करे , बस , फिर क्या था उसने गीदड़ को अपनी सूंड में लपेटकर ऊपर उठाया फिर धरती पर पटक दिया । जैसे ही गीदड़ उठने लगा तो हाथी ने अपना पांव उसके पेट पर रखकर सदा के लिए उसे मीठी नींद सुला दिया । शेर दूर खड़ा हंस रहा था ।

हंसते - हंसते उसके मुंह से एक ही वाक्य निकला " मूर्ख वेमौत मारा गया । "