राजा कृष्णदेव राय के निजी बगीचे में बैंगन के पौधे थे, जो बिना बीज के थे।
राजा की आज्ञा के बिना न तो कोई उस बगीचे में जा सकता था, न ही कोई फल तोड़ सकता था। राजा कृष्णदेव राय के अतिरिक्त किसी ने वे बैंगन नहीं चखे थे।
एक दिन राजा कृष्णदेव राय ने सभी दरबारियों को राजमहल में दावत पर बुलाया।
दावत में बिना बीज वाले उन ख़ास बैंगनों का सालन भी बना था।
तेनालीराम को वह इतना पसन्द आया कि घर लौट कर भी वह उसी की बात करता रहा। तेनाली से उन बैगनों की इतनी तारीफ सुनकर उसकी पत्नी ने भी बैगन खाने की इच्छा प्रगट की।
लेकिन मैं वे बैंगन तुम्हारे लिए कैसे ला सकता हूँ। तेनालीराम अपनी पत्नी से बोला, अरे महाराज को वे बैंगन इतने प्रिय है कि पेड़ से एक भी कम हो जाये, तो वे पूरा राजमहल सर पर उठा लेते हैं।
मै तो रंगे हाथों पकड़ा जाऊंगा। पर तेनाली की पत्नी न मानी। स्त्री हठ के आगे तेनाली को झुकना ही पड़ा और वह शाही बगीचे से बैंगन चुरा कर लाने के लिए तैयार हो गया।
अगले दिन शाम के समय तेनालीराम चुपके से शाही बगीचे में घुसा और कुछ बैंगन तोड़ लाया।
उसकी पत्नी ने बड़ी लगन से बैंगन की सब्जी बनायी। सब्जी बहुत अच्छी बनी थी, तेनाली की पत्नी को बहुत पसंद आयी। वह अपने छः साल के बेटे को भी वह सब्जी चखाना चाहती थी, पर तेनाली ने उसे मना करते हुए कहा, ऐसी गलती मत करना।
अगर उसके मुहं से किसी के सामने निकल गया, तो मुसीबत में पद जायेंगे।
पर तेनाली की पत्नी न मानी, यह कैसे हो सकता है कि वह इतना बढ़िया भोजन करे और अपने लाल को चखाये भी नहीं।
इस सब्जी का स्वाद तो ताउम्र जुबान पर रहेगा। आप कोई तरकीब निकालो न जिससे सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।
हारकर तेनालीराम ने हथियार डाल दिये और छत पर सो रहे अपने पुत्र को उठाने गया। परन्तु उसे उठाने से पहले, तेनाली ने एक बाल्टी पानी से भरी और सोते हुए पुत्र पर डाल दी।
हड़बड़ा कर उसने आँखे खोल दी, तो उसे गोदी में उठाते हुए तेनालीराम बोला, जोर की बारिश हो रही है। चल भीतर चल कर सोते हैं।
घर के भीतर लाकर तेनालीराम ने उसके वस्त्र बदले और उसे बैंगन की सब्जी खिलायी। भोजन करते समय तेनाली ने फिर याद दिलाया कि वर्षा के कारण अब सबको भीतर ही सोना पड़ेगा।
अगले दिन राजा को बैंगन की चोरी के विषय में पता चल गया। शाही बगीचे के माली ने जब बैंगन की गिनती की तो उसमें चार बैंगन कम निकले।
चारों ओर शोर मच गया। पूरे शहर में बैंगन चोरी होने की चर्चा होने लगी। महाराज ने चोर के सिर पर भारी ईनाम घोषित किया।
न जाने कैसे दण्डनायक सेनापति को तेनालीराम पर शक हो गया। उसने महाराज को अपने शक के बारे में बताया।
उसके अनुसार तेनालीराम के अतिरिक्त किसी में इतना साहस नहीं है कि शाही बगीचे से बैगन चुरा सके।
महाराज ने कहा, तेनालीराम बहुत चतुर है। यदि उसने चोरी की है, तो वह अपनी चालाकी से बात छुपा जाएगा। ऐसा करो, तेनाली के पुत्र को बुलाओ। हम उसके पुत्र से सच्चाई का पता लगायेंगे।
तेनालीराम के पुत्र को राजदरबार में लाया गया। उससे पूछा गया कि उसने कल रात को भोजन में क्या खाया था। वह बोला, मैंने कल रात को बैंगन खाये थे।
वे इतने स्वादिष्ट थे कि उनका जवाब नहीं था।
अब तो दण्डनायक ने तेनाली को धर दबोचा। तेनाली! अब तो तुम्हें अपना अपराध मानना ही पड़ेगा।
क्यों ? मैंने कुछ किया ही नहीं है, तो मैं अपराध क्यों मानूं ? तेनाली बोला, कल रात मेरा बेटा जल्दी ही सो गया था।
ऐसा प्रतीत होता है कि उसने कोई सपना देखा है, तभी वह बैंगन, बारिश आदि जैसी नामुमकिन बातें कर रहा है। पूछिये उससे क्या कल रात बारिश हुई थी ?
दण्डनायक ने बच्चे से बारिश के विषय में पूछा, तो बच्चे ने भोलेपन से जवाब दिया, कल रात तो बहुत तेज वर्षा हुई थी। मैं बाहर सो रहा था। मेरे सारे वस्त्र भींग गये। इसके बाद मैं भीतर आकर सोया।
वास्तविकता तो यही थी कि पिछली रात शहर में एक बूँद भी वर्षा नहीं हुई थी।
बच्चे की बात सुनकर दण्डनायक और राजा कृष्णदेव राय चुप हो गये और उन्होंने तेनालीराम पर शक करने के लिए माफ़ी मांगी।