माली की बकरी

राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में विजयनगर अंतरार्ष्ट्रीय व्यापार का मुख्य केंद्र था।

दूर-दराज के देशों से व्यापारी यहां आते थे।

एक बार ईरान से एक व्यापारी आया। वह अपने साथ एक अनोखा पौधा लाया जिस पर खुशबूदार फूल लगे थे, जो साल भर खिलते थे।

राजा को वह पौधा बहुत पसंद आया। उन्होंने उसे अपने सोने के कमरे की बड़ी खिड़की के सामने बोने के लिए माली को कहा ताकि वे जब चाहे उसे देख सकें और फूलों की खुशबू से उनका महक जाये।

माली ने ऐसा ही किया। जल्दी ही उस पौधे ने जड़ पकड़ ली और ढेर सारे फूलों से लद गया।

एक दिन माली की बकरी रस्सी तुड़ाकर शाही महल में घुस आयी और फूलों के समेत पूरा पौधा खा गयी। इस घटना का पता चलते ही माली की तो जान ही निकल गयी।

राजा को बताने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी। अगली सुबह जब राजा रोज की तरह खिड़की पर आये और बाग़ की और देखा तो उन्हें अपना पसंदीदा पौधा कहीं नजर न आया।

उन्होंने उसी समय माली को बुलाकर पूछा तो माली ने डरते-डरते सब कुछ सच-सच बता दिया। राजा को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने माली को फांसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया।

इस घटना की खबर पूरे राज्य में बिजली की तरह फ़ैल गयी। माली की पत्नी ने राजा को बहुत हाथ-पैर जोड़े पर उनका फैसला नहीं बदला।

अंत में माली की पत्नी तेनालीराम के पास गयी। रट हुए उसने तेनाली को पूरी कहानी सुनायी। सारी कहानी सुनने के बाद तेनाली ने उसे आश्वासन दिया कि वह माली को बचाने की पूरी कोशिश करेगा।

तेनाली ने उसके कान में फुसफुसा कर कुछ कहा और उसे ऐसा ही करने को कहकर वापस भेज दिया।

अगले दिन लोगों ने देखा कि माली की पत्नी ने अपनी बकरी को विजयनगर की मुख्य सड़क पर बांध रखा है और उसे तड़ातड़ छड़ी से मार रही है।

जब अधिकारीयों और शाही सैनिकों ने उसे ऐसा करते देखा तो वे उसे पकड़कर अपने साथ राजा के पास ले गये। जब अधिकारीयों और शाही सैनिक ने उसे ऐसा करते देखा, तो वे उसे पकड़कर अपने साथ राजा के पास ले गये।

जब राजा ने उससे पूछा कि वह इस निर्दोष जीव को क्यों मार रही है तो वह बोली, महाराज यह बकरी अपशगुनी है।

इसी के कारण मैं विधवा होने जा रही हूँ और मेरे बच्चे अनाथ हो जायेंगे। यह अपनी ही गलती की सजा पा रही है।

अरे यह तो बकरी है, एक गूंगी निःसाय बकरी से कैसे तुम्हें विधवा बना सकती है ?

राजा ने अचरज से पूछा। महाराज! यह वही बकरी है, जिसने आपके बाग़ का वो पौधा खा लिया, जिसके कारण आपने मेरे पीटीआई को फांसी की सजा सुना दी।

हालाँकि कुसूर सारा इस बकरी का है, मेरे पीटीआई निर्दोष हैं, फिर भी यह बकरी तो चैन से बैठी पत्ते चबा रही है और मेरे पति फांसी पर लटकने जा रहे हैं।

इसलिए मैं इस बकरी को पीट रही थी। सुबकते हुए माली की पत्नी ने कहा।

उसकी बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय की आँखे खुल गयीं और उन्हें अपनी गलती समझ में आ गयी। तुम्हारा पीटीआई नहीं मरेगा।

मैं उसे माफ़ करता हूँ और आजाद करता हूँ।

अब मैं चाहता हूँ कि तुम भी इस बकरी को मत मारो और उसे शांतिपूर्वक घास खाने दो।

महाराज ने कहा। इस प्रकार तेनालीराम की चतुराई ने एक बेगुनाह की जान बचा ली।