एक बार दरबार में तेनालीराम बहुत उदास बैठा था।
इस पर राजा कृष्णदेव राय का ध्यान गया, तो उन्होंने पूछा, तेनाली! आज इतने उदास क्यों हो ? क्या बात है ?
तेनालीराम धीरे से उठा और बोला, जी महाराज! आज मेरा मन बहुत उदास है।
मुझे कल एक ज्योतिषी ने बताया कि मैं दो माह के भीतर मर जाऊंगा। मुझे मरने से डर नहीं लगता।
मुझे तो यह चिंता खाये जा रही है कि मेरे मरने के बाद मेरे परिवार का क्या होगा। उनका लालन-पालन कौन करेगा।
तेनालीराम की यह बात सुनकर महाराज ने उसे आश्वासन दिया तेनाली तुम चिंता छोड़ दो।
तुम सदा से हमारे वफादार रहे हो, तो तुम्हारे परिवार की देखभाल करना हमारा कर्तव्य है।
हम तुम्हारे परिवार का तुमसे दस गुना ज्यादा ध्यान रखेंगे। यह कोई बड़ी बात नहीं है। तुम अपना ख्याल रखो।
इसके बाद ज्यों-ज्यों दिन बीतते गये, तेनाली की तबियत बिगड़ती गयी।
अंत में पूरे राज्य में अफवाह फ़ैल गयी कि तेनालीराम मर गया है और उसने अपनी पूंजी गहने आदि एक बड़े संदूक में बंद कर दिए हैं।
जैसे ही राजा कृष्णदेव राय को तेनाली के मरने की सूचना मिली, उन्होंने वह बड़ा संदूक लाने अपने सैनिक भेज दिये।
उन्हें यकीन था कि संदूक में से एक बड़ा खजाना निकलेगा।
संदूक आते ही महाराज ने हाथ मलते हुए उसे खोलने का आदेश दिया। जैसे ही संदूक खुला सबने देखा तेनालीराम बैठा था।
तुम! तुम यहां क्या कर रहे हो तेनाली ? राजा कृष्णदेव राय जोर से चिल्लाये। तुम तो मर चुके थे।
तेनालीराम बिना लाग-लपेट के बोला, महाराज! आपके भरोसे मैं कैसे मरता ? आपने तो मेरे परिवार का भरण-पोषण करने का वादा भी नहीं निभाया।
तेनालीराम की बात सुनकर महाराज का सिर शर्म से झुक गया।