राजा कृष्णदेव राय पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम करते थे।
एक बार एक बहेलिया शहर में आया। उसने महाराज को अत्यंत खूबसूरत रंग-बिरंगा पक्षी भेंट में दिया।
पक्षी पिंजरे में था। इस अनोखे पक्षी को न तो राजा ने और न ही दरबारियों ने कभी देखा था।
बहेलिया राजा से बोला, महाराज! मैंने केलड़ी के घने जंगल से इस खूबसूरत पक्षी को बड़ी कठिनाई से पकड़ा है।
यह पक्षी मीठा गाना गाता है और तोते की तरह बात भी करता है। यह मोर की तरह रंग-बिरंग है।
और उसकी तरह नाचता भी है। मैं यह पक्षी आपको बेचने के लिए यहाँ लाया हूँ।
राजा को वह पक्षी बहुत पसंद आया था।
उन्होंने उसे बहेलिए से खरीदने का निर्णय ले लिया। बिना मोल-भाव किये राजा ने बहेलिए को सौ स्वर्ण मुद्राएं देने का फैसला किया।
तभी तेनालीराम, जो काफी देर से उस पक्षी को देख रहा था खड़ा हुआ और राजा से बोला, महाराज! मुझे नहीं लगता कि यह पक्षी वर्षा में नाच सकता है।
मुझे तो यहां तक लगता है कि यह पक्षी अरसे से नहाया भी नहीं है।
इतना कहकर तेनालीराम ने पास रखा पानी का मटका उठाया और उसे पक्षी पर डाल दिया।
पक्षी पूरी तरह पानी में भींग गया। राजा और सभी दरबारीगण आश्चर्यचकित होकर उस पक्षी को देखते रह गये।
पक्षी के शरीर से बहता पानी रंगीन था और अब वह पक्षी अपने पुराने फीके रंग में आ चूका था। राजा ने आश्चर्य से तेनालीराम की और देखा।
वह वोला महाराज! यह कोई अनोखा रंग-बिरंगा पक्षी नहीं है। यह तो साधारण कबूतर है।
परन्तु तेनाली! तुम्हें कैसे पता चला कि इस कबूतर के रंग नकली है ? राजा ने पूछा।
इस बहेलिये के रंगीन नाख़ून देखकर। महाराज! जिन रंगों से इसने कबूतर को रंग-बिरंगा बनाया है, वे अभी भी इसकी उँगलियों और नाखूनों पर लगे हुए हैं। तेनाली ने राजा को बताया।
राजा कृष्णदेव राय ने सैनिकों को बहेलिये को को पकड़ने का आदेश दिया और तेनालीराम को ढेर सारा इनाम दिया।