शादी की रस्म

एक बार राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम के बीच बहस छिड़ गयी।

बहस का मुद्दा था कि लोगों को आसानी से मुर्ख बनाया जा सकता है या नहीं ?

महाराज का कहना था कि ऐसा करना आसान नहीं है परन्तु तेनालीराम के विचार में लोगों को मुर्ख बनाना कोई बड़ी बात नहीं है।

राजा कृष्णदेव राय बोले, तुम किसी को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी कार्य को करने के लिए विवश नहीं कर सकते हो।

तेनाली बोला, महाराज! इस दुनिया में कुछ भी असम्भव नहीं है।

मैं साबित कर सकता हूँ। आप चाहें तो मैं सबके सामने आपकी किसी से जुटे द्वारा मरम्मत भी करवा सकता हूँ।

राजा ने कहा, बातें तो बड़ी ऊँची कर रहे हो, तेनाली! जो कहा है वह करके दिखाओ तप जानें।

मैं आपकी चुनौती स्वीकार करता हूँ, महाराज! बस मुझे यह कर दिखाने के लिए कुछ दिनों की मोहलत दीजिये। तेनालीराम सिर झुका कर बोला।

राजा मान गये।

कई दिन बीत गये। इसी बीच राजा अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त होकर तेनालीराम को दी गयी चुनौती के विषय में बिल्कुल भूल गये।

महीने भर बाद राजा कृष्णदेव राय का विवाह कुर्ग के आदिवासी राजा की खूबसूरत पुत्री से होना तय हुआ। लड़की वालों को राजा के परिवार में होने विवाह की रस्मों के बारे में कुछ पता नहीं था।

राजा कृष्णदेव राय ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा, मुझे सिर्फ आपकी पुत्री चाहिए। हर राजा में विवाह के रस्मों-रिवाजों विभिन्न होते हैं। इसलिए आप उनकी चिंता न करें।

फिर भी वे लड़की के पिता थे, तो वे राजघराने के सभी रिवाज पूर्णतया निभाना चाहते थे।

एक दिन तेनालीराम चुपके से आदिवासी राजा से मिलने गया। उसने उन्हें राजघराने के रस्मों के विषय में बताया लेकिन एक शर्त के साथ कि वे इसके बारे में किसी को नहीं बतायेंगे।

आदिवासी राजा बहुत खुश हो गये और उन्होंने तेनाली को वचन दिया कि यह सूचना गुप्त ही रहेगी।

महाराज कृष्णदेव राय के परिवार का एक पुराण रिवाज है कि विवाह की रस्म पूर्ण होने पर वधू अपनी चप्पल उतर कर सबके सामने वर के ऊपर खींच कर मारती है।

इसके बाद ही वर वधू को विदा करवा के अपने साथ ले जाता है। शाही खानदान की आन-बान बनाये रखने के लिए और विवाह के पवित्र बंधन को अटूट बनाने के लिए यह रस्म निभानी अत्यंत आवश्यक है।

मैं इस रस्म की अदायगी के लिए गोआ से मखमल की बनी पुर्तगाली चप्पलें लाया हूँ।

इन्हें आप वधू को पहना दे। गोआ में मुझे पुर्तगालियों ने भी बताया की चप्पल मारने का रिवाज यूरोप के अनेक देशों में भी है।

आदिवासी राजा पशोपेश में पद गये, भाई इस प्रकार एक पत्नी का सबके सामने अपने पति पर चप्पल फेंक कर मरना क्या यह ठीक होगा ?

देखिए यूँ तो यह रिवाज विजयनगर के राजघराने की सभी शादियों में मनाया जाता है। परन्तु यदि आपको एतराज है तो मत मनाइए, छोड़ दीजिये इसे।

यह कहकर तेनाली मखमली चप्पलें उठाकर चलने को तैयार हुआ तो आदिवासी राजा ने उसका हाथ पकड़ा लिया, अरे नहीं नहीं। आप मुझे ये चप्पलें दीजिये। मैं अपनी पुत्री के विवाह में कोई कमी नहीं करना चाहता। उसका वैवाहिक जीवन सदा फले-फूले।

कुछ दिनों बाद का विवाह का मुहूर्त निकला। बहुत धूमधाम से मंत्रोच्चार के बीच विवाह सम्पन्न हुआ। राजा कृष्णदेव राय अत्यंत प्रसन्न थे।

विवाहोपरान्त जब वे वेदी से उठकर जाने लगे, तभी नववधू ने अपने पेअर से मखमली चप्पल निकली और मुस्कुराते हुए राजा को दे मारी।

राजा को बहुत गुस्सा आया, पर इससे पहले कि वे सैनिकों को आदेश दे पाते तेनालीराम उसके पास आया और कान में बोला, महाराज! कृपया नाराज न हों। यह मेरा किया धरा है। महारानी निर्दोष हैं।

याद कीजिये और तेनाली ने राजा को वह चुनौती याद दिलायी जो राजा ने स्वयं उसे दी थी।

राजा कृष्णदेव राय सब समझ गये और हंसने लगे। उन्होंने वह चप्पल उठायी और नववधू को वापस लौटा दिया।

वह बेचारी सहम कर बार-बार यही कह रही थी मैंने ऐसा सिर्फ रस्म पूरी करने के लिए किया था।

राजा ने उसे तस्सली दी और धीरे से तेनालीराम से बोले तेनाली! तुम सही कहते थे। लोगों को मुर्ख बनाना इतना मुश्किल कार्य भी नहीं है, उन्हें जो भी खो वे तुरंत यकीन कर लेते हैं।