एक बाघ बूढ़ा होने के कारण काफी कमज़ोर हो गया था।
उसमें इतनी शक्ति भी नहीं बची थी कि वह अपने लिए कोई शिकार कर सके।
उसे एक सोने का कंगन मिला।
कंगन लेकर वह कीचड़ में खड़ा हो गया और चिल्लाने लगा, “देखो, देखो, !
मेरे पास आओ और सोने का यह सुंदर कंगन ले लो ।”
एक राहगीर वहाँ से गुज़रा तो लालच में आकर रुक गया।
उसे बाघ के पास जाने में डर भी पूछा। "
अगर मैं कंगन लग रहा था। “मैं तुम्हारा विश्वास कैसे करूँ ?”
उसने दूर से ही बाघ से लेने तुम्हारे पास आया तो तुम मुझे खा जाओगे।”
बाघ ने जवाब दिया, “मैं हमेशा लोगों को मारता रहा, लेकिन अब मैं सुधर गया हूँ
और भलाई का जीवन बिता रहा हूँ।
लोगों को दान करने में मुझे सुख मिलता है।”
राहगीर उसकी बातों में आ गया लेकिन बाघ के पास आकर वह कीचड़ में फँस गया।
बूढ़े बाघ को इसी का इंतज़ार
था। वह उस पर झपट पड़ा और कीचड़ में खींच ले गया। वह राहगीर
पछताते हुए रोने-चिल्लाने लगा, “हाय मेरी किस्मत! लालच में
आकर मैं यही भूल गया कि हत्यारा हमेशा हत्यारा
ही रहता है।”