एक कंजूस बूढ़ी महिला थी ।
उसकी बहुत सारी नौकरानियाँ थीं।
महिला की आदत थी कि वह बड़े सुबह से ही, जब उसका मुर्गा बाँग देता था,
तभी से नौकरानियों को काम के लिए आवाज़ देने लगती थी।
नौकरानियों को सुबह-सुबह उठना बहुत नापसंद था।
उन सभी ने मिलकर मुर्गे को मार डालने का निश्चय किया।
उन्हें लगा कि मुर्गा नहीं रहेगा, तो उन्हें सुबह और अधिक सोने को मिल जाया करेगा।
चुपचाप उन्होंने एक दिन मुर्गे को मार डाला, लेकिन अब उनकी आफत और बढ़ गई।
बूढ़ी महिला को लगने लगा कि बाँग देने के लिए मुर्गा तो है नहीं, तो कहीं अब वह देर तक तो न सोती रहे।
वह अब रात में कभी भी उठ जाती और नौकरानियों को
पर जुटा देती। नौकरानियों को मुर्गे को मार डालने के लिए बहुत
पछतावा हुआ।
बहुत अधिक चालाकी दिखाने पर कई बार
हानि हो जाती है ।