एक मच्छर बैल के आसपास भनभनाते हुए मँडरा रहा था।
मँडराते- मँडराते वह बैल के सींग पर बैठ गया।
अपराध बोध महसूस करते हुए उसने बैल से कहा,
“क्षमा करना महोदय। मुझसे अनजाने में यह हो गया।
अगर तुम्हें लगता है कि मेरे भार से तुम्हें कोई परेशानी हो रही है,
तो मुझसे कहने में झिझकना मत।
मैं यहाँ से उड़कर किसी और जगह बैठ जाऊँगा।”
बैल ने यह सुना तो ज़ोर से हँसने लगा और मच्छर से बोला,
“अपने दिमाग को कष्ट मत दो। मुझे तुमसे परेशानी नहीं है।
मुझे तुम्हारे भार का पता तक नहीं लग रहा है।
मैंने तो तुम्हें देखा तक नहीं था।
तुम्हारे भनभनाने की आवाज़ सुनकर ही मुझे पता लगा कि तुम मेरे सींग पर बैठे हो।
अब तुम बैठे रहो या उड़ जाओ, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।”