यात्री और और कुल्हाड़ी

दो मित्र सड़क पर चले जा रहे थे।

अचानक उन्हें एक कुल्हाड़ी रास्ते में झाड़ी के पास पड़ी मिली।

“अरे! देखो मुझे क्या मिला है!” एक प्रसन्नतापूर्वक बोला।

उसके मित्र ने जवाब दिया, “ये ‘मुझे' मत कहो।

तुम्हें अकेले को यह नहीं मिली है।

यह कुल्हाड़ी हम दोनों को मिली है।”

दोनों के बीच बहस होने लगी।

तब तक कुल्हाड़ी का मालिक अपनी कुल्हाड़ी को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वहाँ आ पहुँचा।

उन दोनों को कुल्हाड़ी लिए देखकर वह चिल्लाया, “चोरो!

तुम लोगों ने मेरी कुल्हाड़ी ली है।”

दोनों मित्र चुपचाप खड़े रह गए।

कुल्हाड़ी का मालिक उन्हें बार-बार चोर कहता रहा।

कुल्हाड़ी पहले उठाने वाला मित्र अपने साथी से बोला, “हाय ! अब तो हम गए काम से ।”

इस पर उसका मित्र बोल पड़ा, “ये 'हम' मत कहो, कहो ‘मैं’ तो गया काम से।”

जो कोई सुख के पल नहीं बाँटता, उसे संकट भी अकेले ही झेलना पड़ता है।