पारखी और उसकी नाक

एक राजा के यहाँ एक हथियारों का एक पारखी था जो तलवारों की जाँच करता था

और उनकी कीमत तय करता था।

तलवार बेचने वालों से वह रिश्वत लेकर उनकी तलवारों की खरीद ज़्यादा दामों में करवा दिया करता था ।

तलवारों की कीमतें तय करते समय वह हमेशा उन्हें सूँघा करता था।

एक दिन एक होशियार शिल्पकार आया।

वह अपनी तलवार बेचना चाहता था लेकिन वह पारखी को रिश्वत नहीं देना चाहता था।

पारखी ने हमेशा की तरह सूँघा और तलवार को खराब बताते हुए उन्हें खरीदने से इन्कार कर दिया।

शिल्पकार समझ गया कि वह पारखी झूठ बोल रहा है।

वह सीधा राजा के पास गया।

इस बार उसने तलवार पर मिर्च का चूर्ण लगा दिया।

राजा ने पारखी को आदेश दिया कि वह तलवार की फिर से जाँच करे।

इस बार भी पारखी ने तलवार की धार को सूँघा।

सूँघते ही उसकी नाक में मिर्च की गंध घुस गई।

वह उछल पड़ा और ज़ोर से छींकने लगा।

तलवार उसके हाथ से छिटककर उसकी नाक पर जा लगी

और उसकी नाक कट गई।

पारखी को उसके लालच का दंड मिल गया ।