बनारस के राजा का एक बहुत चतुर मंत्री था,
जो हमेशा सही सलाह दिया करता था।
उसकी सेवा से प्रसन्न होकर राजा ने उसे एक गाँव का मुखिया बनाकर
उसे कर वसूलने का काम सौंप दिया।
मंत्री प्रसन्न होकर उस गाँव में पहुँच गया।
गाँव वालों ने उसका अच्छी तरह से स्वागत किया।
गाँव वाले मुखिया का बहुत आदर करने लगे।
वे उसके निर्णयों पर पूरा विश्वास करते थे और उसकी बात बिना सोचे-समझे मान लेते थे।
हालाँकि, मुखिया लालची स्वभाव का था और अधिक से अधिक धन कमाना चाहता था।
उसने कुछ डाकुओं से दोस्ती कर ली और उनके साथ मिलकर एक षड्यंत्र किया।
“मैं गाँव वालों को किसी बहाने से जंगल में ले जाऊँगा और तुम लोग तब तक उनके घरों को लूट लेना।
बाद में उस लूट का धन हम लोग आधा-आधा बाँट लेंगे,” मुखिया ने डाकुओं से कहा।
डाकुओं ने मुखिया की बात मान ली और इस काम के लिए एक दिन निश्चित कर लिया।
उस दिन मुखिया गाँव वालों को यह कहकर जंगल ले गया कि गाँव में मनाए जाने वाले त्योहार के लिए कुछ हिरनों का शिकार करना है।
गाँव वाले तो उसके ऊपर पूरा विश्वास करते ही थे।
वह तुरंत प्रसन्नतापूर्वक गाना गाते हुए उसके साथ जंगल चल दिए ।
इधर, डाकू गाँव में घुस पड़े और सारे घरों का कीमती सामान
और जानवर तक ले गए।
उसी दिन, एक व्यापारी किसी दूसरे गाँव से उस गाँव में व्यापार करने आ पहुँचा।
जब उसने सारे क खाली देखे, तो वह गाँव के बाहर ही गाँव वालों के लौटने की प्रतीक्षा करने लगा।
जब वह खड़ा प्रतीक्षा कर रहा था, तभी उसे सामान और जानवर लिए डाकू भागते दिखे।
उसने यह भी देखा कि दूसरी ओर से मुखि
या गाँव वालों के साथ गाँव की ओर चला आ रहा है
और गाँव वालों से ढोल बजाने को कह रहा है ताकि उन पर कोई जंगली जानवर हमला न कर दे।
हालाँकि यह भी मुखिया की एक चाल ही थी कि ढोल की आवाज़ सुनकर डाकू समझ जाएँ कि गाँव वाले लौट रहे हैं।
जब गाँव वाले गाँव वापस आ गए तो अपने घरों का सारा सामान चोरी हुआ
देख स्तब्ध रह गए। “अब हम क्या करेंगे ? हम तो बर्बाद हो गए,” वे
रोने-चिल्लाने लगे ।
मुखिया भी बहुत उदास और चिंतित होने का दिखावा करने लगा और बोला,
“यह तो बहुत बुरा हुआ। हमें दोषियों को पकड़ना होगा और उन्हें दंड
दिलवाना होगा।”
तभी सब कुछ देख-समझ चुका व्यापारी उठ खड़ा हुआ और बोला, “यह मुखिया ही धोखेबाज़ है। उसने
ही तुम लोगों से ढोल बजाने को कहकर डाकुओं को तुम्हारा सारा सामान
लेकर भागने में मदद की है। वह डाकुओं से मिला हुआ है।”
नाराज़ गाँव वालों ने पूरा मामला राजा को बताया।
जाँच कराए जाने पर मुखिया की सारी बदमाशी सामने आ गई।
राजा मुखिया से कहा, “तुम्हें कठोर दंड दिया जाएगा।
तुम्हारी सारी उपाधियाँ, विशेषाधिकार, सुख-सुविधाएँ,
सब वापस ले ली जाएँगी। यह लालच तुम्हें बहुत महँगा पड़ेगा।”
इसके बाद राजा ने मुखिया को आजीवन कारावास की सजा सुना दी
और गाँव के हर व्यक्ति को हरजाने के तौर पर सोने के सौ-सौ सिक्के दे दिए।