बहुत समय पहले की बात है।
साधुओं के दो गुट थे।
एक गुट बरगद के पेड़ के नीचे भारू नगर के उत्तर में रहता था,
जबकि दूसरा गुट नगर के दक्षिण में एक किसी दूसरे पेड़ के नीचे रहता था।
एक बार जब कड़ाके की ठंड पड़ रही थी, तभी दक्षिण वाला पेड़ गिर गया
और उसके नीचे रहने वाले साधु बेघर हो गए।
वे नए आसरे की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। भटकते-भटकते वे
उत्तर दिशा वाले पेड़ के पास पहुँचे और वहाँ पहले से रह रहे साधुओं को भगाने की कोशिश करने लगे।
साधुओं के दोनों गुटों में झगड़ा होने लगा।
दोनों गुटों का झगड़ा राजा के पास भी पहुँचा ।
दक्षिण के साधुओं ने राजा को रिश्वत देकर उससे अपने पक्ष में निर्णय करवा लिया।
राजा के इस भेदभाव वाले निर्णय से नाराज़ होकर देवताओं ने एक भयंकर तूफान को भेज दिया।
सारा नगर उसकी चपेट में आ गया। हर जगह पानी-पानी भर गया।
कुछ सज्जनों को छोड़कर सारे लोग मौत के गाल में समा गए ।