एक बार वाराणसी के राजा ने नगर में महोत्सव का आयोजन किया।
कई सारे राजा इसमें शामिल हुए। नाग और गरुड़ भी इसके समारोहों में शामिल होने पहुँचे।
समारोह के दौरान, एक नाग ने अपने बगल में बैठे एक व्यक्ति के कंधे पर हाथ रखा।
उसने यह नहीं देखा कि उसके बगल में बैठा व्यक्ति एक
गरुड़ है। नागों और गरुड़ों के बीच बहुत पुरानी शत्रुता चली
आ रही थी। दोनों के झगड़े में हमेशा गरुड़ ही भारी पड़ते थे।
जब नाग को अपनी गलती का अहसास हुआ तो वह अपनी जान बचाने के लिए भागा ।
नाग के पीछे-पीछे गरुड़ भी भागा।
नाग को आगे तपस्या में लीन एक साधु दिखा।
नाग अपनी जान बचाने के लिए उसी के पीछे छिप गया। गरुड़ ने साधु को तप करते देखा,
तो उसका सम्मान करते हुए नाग का पीछा करना छोड़ दिया ताकि साधु को किसी तरह का नुकसान न पहुँचे।
साधु जानता था कि गरुड़ और नाग के बीच बहुत पुरानी शत्रुता है।
उसने दोनों को पास बैठाया तथा उन्हें प्यार और दया के बारे में बताया।
नाग और गरुड़ ने हाथ मिलाए और दोनों दोस्त बन गए।