एक कपटी साधु एक धनी व्यक्ति के मकान में अतिथि बनकर रहना चाहता था।
एक दिन धनी व्यक्ति ने अपने सोने के सारे सिक्के साधु के कमरे में गाड़ दिए।
साधु ने इस तरह से बहाना किया जैसे उसने कुछ नहीं देखा हो।
जब वह व्यक्ति घर से बाहर गया तो साधु ने सारे सिक्के खोदकर निकाल लिए और एक पेड़ के नीचे गाड़ दिए।
अगले दिन, साधु ने उस धनी व्यक्ति से विदा ली और उसका घर छोड़ दिया।
थोड़ी देर बाद, साधु उस धनी व्यक्ति के पास फिर लौट आया।
उसके हाथ में एक तिनका था। उसने वह तिनका धनी व्यक्ति को दे दिया और
बोला कि वह अपने साथ ऐसी कोई भी चीज़ नहीं ले जा रहा है, जो उसकी नहीं है।
व्यापारी के घर के पास रह रहे बोधिसत्व ने यह सब देखा तो साधु की चालाकी समझ गए।
उन्होंने धनी व्यक्ति से अपने सिक्के देखने को कहा।
चोरी पकड़ी गई।
बोधिसत्व ने कहा कि चोरी इसी साधु ने की है।
साधु को गलती माननी पड़ी और उसे सारे सिक्के लौटाने पड़े।