दो व्यापारी और पवित्र पेड़

दो व्यापारी थे, जिनके नाम बुद्धि और महाबुद्धि थे। दोनों ने व्यापार

में काफी अधिक लाभ कमाया और आपस में बाँटने का निश्चय किया।

महाबुद्धि ने कहा कि उसका नाम ही महाबुद्धि है, इसलिए उसे दुगुना हिस्सा मिलना चाहिए।

बुद्धि उससे असहमत था। दोनों व्यापारी एक पवित्र पेड़ के पास गए और उससे उनका निपटारा करने का अनुरोध किया।

महाबुद्धि ने पहले से ही उस पेड़ के खोखले में अपने पिता को छि

पा दिया था।

दोनों व्यापारियों ने पेड़ के सामने अपनी-अपनी बात रखी।

तने में छिपा महाबुद्धि का पिता वहीं से बोला, “महाबुद्धि को आय में से दुगुना हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि

वह अधिक बुद्धिमान है।” बुद्धि को महाबुद्धि की चाल समझ में आ गई।

उसने पेड़ में आग लगा दी।

पेड़ में आग लगते ही महाबुद्धि का पिता चिल्लाते हुए निकल भागा,

“हे भगवान, मुझे बचाओ। घाटा होता हो तो हो जाए, कम से कम जान तो बच जाएगी।”