स्वर्ण-हृदय

एक परोपकारी और धनी व्यक्ति था।

वह अपने द्वार पर आने वाले हर ज़रूरतमंद की सहायता करता था।

उसकी अत्यधिक उदारता के कारण उसे लोग 'स्वर्ण-हृदय' कहने लगे थे।

एक दिन स्वर्ग में बैठे देवताओं ने उसकी उदारता की परीक्षा लेने का निश्चय

किया और उसे ऐसी स्थिति में लाने की योजना बनाई कि वह

किसी को कुछ भी देने योग्य न रहे।

देवताओं ने चोरों का वेश धारण किया और उस धनी व्यक्ति के मकान

पर जाकर उसकी सारी धन-दौलत लूट ली ।

कुछ देर बाद देवता सक्क एक भिखारी के रूप में उस व्यक्ति के द्वार पर जा पहुँचे और उससे भोजन माँगने लगे।

धनी व्यक्ति के पास उस समय रोटी का एक ही टुकड़ा था, जिसे वह खाने ही जा रहा था।

उसने सक्क को वह टुकड़ा दे दिया।

उसकी दयालुता से देवतागण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसकी सारी धन-दौलत वापस कर दी ।