अभागा जुलाहा

सोमिलक एक कशल जुलाहा था, जो राजपरिवार के सदस्यों के लिए

सुंदर-सुंदर कपड़े बनाया करता था।

हालाँकि, वह निर्धन था, इसलिए उसने एक अन्य नगर वर्धमानपुरम जाकर भाग्य

आजमाने का निश्चय किया।

दिन-रात परिश्रम करके उसने तीन वर्षो में सोने के तीन सौ सिक्के कमाए।

अब उसने वापस अपने घर लौटने का निश्चय किया और चल पड़ा।

दिन ढलते-ढलते उसने अपने को जंगल के बीच पाया।

वह एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया और एक डाली पर टिककर सोने लगा।

सपने में उसे कार्य देवता और भाग्य देवता आपस में बात करते दिखाई दिए।

भाग्य देवता ने कार्य देवता से पूछा, “इस जुलाहे के भाग्य में

सुख-सुविधाओं में रहना नहीं लिखा है।

आपने उसे सोने के तीन सौ सिक्के क्यों दे दिए ?”

कार्य देवता ने जवाब दिया, “जो लोग कड़ा परिश्रम करते हैं,

मैं उनका पारश्रमिक उन्हें देता ही हूँ।

अब जुलाहे के हाथ में यह धन रह पाता है या नहीं, ये आपके ऊपर निर्भर है।"

सपना देखकर बुनकर की नींद खुल गई।

उसने अपना थैला देखा तो उसमें रखे सिक्के गायब थे। दुखी सोमिलक रोने लगा,

“मैं खाली हाथ घर कैसे जाऊँगा ? अपनी पत्नी को मैं क्या बताऊँगा ?”

उसने फिर से वर्धमानपुरम जाने और फिर से धन कमाने का निश्चय किया।

इस बार उसने सोने के पाँच सौ सिक्के एक ही वर्ष में कमा लिए ।

इस बार भी उसे वही सपना दिखा।

उसने तुरंत अपना थैला देखा तो इस बार भी सारे सिक्के

गायब

सोमिलक पूरी तरह से निराश हो गया और

उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया।

अचानक उसे आकाशवाणी सुनाई दीः " हे सोमिलक !

मैं भाग्य हूँ। मैंने ही तुम्हारा सारा धन ले लिया है।

हालाँकि, मैं तुम्हारे परिश्रम और ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूँ ।

तुम मुझसे कोई भी वरदान माँग लो। मैं तुम्हारी इच्छा पूरी करूंगा।”

नवंबर

“हे देव, आप मुझे बहुत सारा धन दे दीजिए,” जुलाहे ने कहा।

“उसके लिए तुम्हें वर्धमानपुरम फिर से जाना पड़ेगा।

वहाँ तुम्हें दो व्यापारी मिलेंगे-गुप्तधन और उपभुक्तधन।

उनसे मिलो और उनके बारे में ठीक से जानो।

फिर तुम तय करना कि तुम क्या बनना चाहते होः गुप्तधन, जो बहुत सारा धन कमाता है,

लेकिन एक पैसा खर्च नहीं करता है, या उपभुक्तधन, जो बहुत सारा धन कमाता भी है और खर्च भी करता है ?"

सोमिलक ने ऐसा ही किया और वापस वर्धमानपुरम चला गया।

वह पहले गुप्तधन के पास गया और उससे अपने घर पर एक रात रुकने देने का अनुरोध किया।

गुप्तधन तैयार हो गया लेकिन सोमिलक को उसने भोजन अनिच्छा से ही दिया और

जता दिया कि वह जबरदस्ती का मेहमान है। अगले दिन, गुप्तधन को हैज़े की बीमारी हो गई और उसने भोजन नहीं किया।

इस प्रकार से सोमिलक को खिलाए भोजन का नुकसान उसने पूरा कर लिया।

इसके बाद, सोमिलक उपभुक्तधन के घर गया।

उपभुक्तधन ने उसका स्नेह और आदर से स्वागत किया।

जुलाहे ने अच्छी तरह से भरपेट खाना खाया और चैन की नींद सोया।

अगले दिन, उपभुक्तधन के पास राजमहल से एक संदेशवाहक आया और

उसे राजा की ओर से बहुत सारा धन दे गया। सोमिलक ने मन में सोचा,

“उपभुक्तधन की तरह बनना ही अच्छा रहेगा।

वह अपने मनमर्जी से जीता तो है।

कंजूस स्वभाव का धनी होने से क्या लाभ?”

उसकी पसंद से प्रसन्न होकर देवताओं ने जुलाहे पर धन की वर्षा कर दी।