बोधिसत्व ने संन्यासी का जीवन बिताने के लिए सारे सांसारिक सुखों का परित्याग कर दिया था।
उनकी सुंदर पत्नी ने भी नए जीवन में उनका साथ देने का निश्चय किया।
दोनों ने एक वन में कुटिया बनाई और वहीं रहने लगे।
एक दिन वहाँ के राजा ने बोधिसत्व की पत्नी को देखा।
उसे देखते ही राजा को प्रेम हो गया और उसने उससे विवाह करने का निश्चय किया ।
बोधिसत्व की शक्तियों की परीक्षा लेने के लिए राजा उनके पास गया
और पूछने लगा कि अगर वह उनकी पत्नी से विवाह करना चाहे तो वह क्या करेंगे।
बोधिसत्व ने जवाब दिया, “मैं बिलकुल क्रोध नहीं करूँगा।”
राजा उनका जवाब सुनकर हँस पड़ा और बोधिसत्व की पत्नी को खींचकर उसने अपने रथ में बैठा लिया।
बोधिसत्व शांत बने रहे। राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और उनसे क्रोध न करने का कारण पूछने लगा ।
“क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है," बोधिसत्व ने जवाब दिया ।
"यह मनुष्य के आंतरिक सौंदर्य को नष्ट कर देता है और उसे सुख के रास्ते से दूर ले जाता है।"
राजा उनकी महानता बहुत प्रभावित हुआ।
उसने बोधिसत्व से क्षमा माँगी और उनकी पत्नी को छोड़ दिया ।